लाल किले पर फहराया धार्मिक झंडा…लेकिन सजा नहीं ?

जब ट्रैक्टर लेकर किसानों ने दिल्ली को घेर लिया
लाल किले पर फहराया धार्मिक झंडा; 3456 पन्नों की चार्जशीट, लेकिन सजा नहीं

तारीख 26 जनवरी 2021, दिल्ली में 26 जनवरी का समारोह बस शुरू ही होने वाला था। सिक्योरिटी ऐसी कि परिंदा भी पर नहीं मार सके। लालकिला तक जाने के लिए तो पुलिस वालों को भी स्पेशल पास लगता था।

इधर, दिल्ली से सटे सिंघु बॉर्डर पर अलग ही नजारा था। सुबह-सुबह ट्रैक्टर और ट्रॉली लेकर किसान दिल्ली कूच करने निकले थे। तीन कृषि कानूनों के खिलाफ हजारों किसान ‘रैली करेंगे-रिंग रोड पे’ और ‘ट्रैक्टर दे नाल-ट्रॉली जाऊ’ यानी ट्रैक्टर के साथ ट्रॉली भी जाएगी.. जैसे नारे लगा रहे थे।

उनके हाथों में तिरंगा और किसान संगठनों के झंडे थे। कोई ट्रैक्टर पर चढ़कर नाच रहा था, तो कोई गा रहा था। सड़क पर दोनों तरफ हजारों की संख्या में खड़े लोग इनका जोश बढ़ा रहे थे। जबकि किसान नेताओं ने ऐलान किया था कि रैली, दिल्ली पुलिस के रूट-मैप पर ही होगी और ट्रैक्टरों के साथ ट्रॉली नहीं जाएगी।

किसान नेता कोई फरमान जारी करते, उससे पहले ही हजारों ट्रैक्टर दिल्ली के लिए रवाना हो गए। पुलिस ने आंसू गैस छोड़कर इन्हें रोकना चाहा, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। किसान तय रूट छोड़कर कश्मीरी गेट की तरफ बढ़ने लगे। दूसरी तरफ टीकरी और गाजीपुर बॉर्डर से भी हजारों किसान ट्रैक्टर लेकर दिल्ली के लिए निकल गए।

दोपहर होते-होते आंदोलनकारी लाल किले तक पहुंच गए। दो घंटे तक लाल किले को घेरे रखा। हद तो तब हो गई जब भीड़ में से निकलकर कुछ लोगों ने लाल किले पर धार्मिक झंडा फहरा दिया। पुलिस के साथ झड़प भी हुई। 165 पुलिस, सुरक्षा बल, मीडियाकर्मी और आंदोलनकारी जख्मी हुए। ट्रैक्टर से गिरने से एक किसान की जान भी गई।

‘दिल्ली के महाकांड’ सीरीज के आखिरी एपिसोड में कहानी किसान आंदोलन के दौरान हुई लाल किला कांड की…

26 जनवरी 2021, लाल किले पर धार्मिक झंडा फहराते हुए आंदोलनकारी।
26 जनवरी 2021, लाल किले पर धार्मिक झंडा फहराते हुए आंदोलनकारी।

जून 2020 की बात है। दुनियाभर में कोविड कहर बरपा रहा था। भारत में 11 हजार से ज्यादा मौतें हो चुकी थीं। कई शहर लॉकडाउन की जद में थे। इसी बीच 5 जून को केंद्र सरकार एक अध्यादेश के जरिए तीन कृषि बिल लेकर आती है। विपक्ष विरोध जताता है कि बिना चर्चा के कृषि कानून लाने की जल्दबाजी क्यों है… पर सरकार नहीं मानती।

सितंबर 2020 में केंद्र सरकार लोकसभा और राज्यसभा में ‘फार्म बिल 2020’ लेकर आती है। दोनों सदनों से यह बिल पास भी हो जाता है, लेकिन किसान इसके खिलाफ बगावत पर उतर जाते हैं। उन्हें लगता है कि नए बिल से मंडियां खत्म हो जाएंगी। बड़ी कंपनियां फसलों की कीमतें तय करने लगेंगी। विरोध में किसान पहले पंजाब और फिर बाद में दिल्ली बॉर्डर पर धरने पर बैठ जाते हैं।

सरकार और किसानों के बीच 11 बार बातचीत हुई, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। सुप्रीम कोर्ट ने 18 महीने के लिए तीनों कृषि कानूनों पर रोक लगा दी, इसके बाद भी किसान दिल्ली बॉर्डर से हटने को तैयार नहीं हुए। उनका कहना था- ‘जब तक तीनों कानून वापस नहीं लिए जाते, हम आंदोलन जारी रखेंगे।’

7 जनवरी 2021 को किसान संगठनों ने दिल्ली में ट्रैक्टर मार्च का ऐलान किया और 26 जनवरी को लाल किला कांड हो गया।

पुलिस का दावा : पहले ​​​​से की गई थी लाल किला कांड की प्लानिंग

लाल किला हिंसा को लेकर दिल्ली पुलिस ने 53 FIR दर्ज कींं और 16 लोगों के खिलाफ चार्जशीट फाइल की। पुलिस ने 3456 पन्नों की चार्जशीट में बताया कि प्रदर्शनकारी लाल किले पर कब्जा करके उसे किसान आंदोलन के लिए नया धरनास्थल बनाना चाहते थे। उन्होंने इसके लिए जानबूझकर 26 जनवरी की तारीख चुनी।

किसानों को दिल्ली जाने से रोकने के लिए पुलिस ने जगह-जगह कंटीले तारों से फेंसिंग कर रखा था।
किसानों को दिल्ली जाने से रोकने के लिए पुलिस ने जगह-जगह कंटीले तारों से फेंसिंग कर रखा था।

पुलिस ने पंजाबी एक्टर दीप सिद्धू को मुख्य साजिशकर्ता बताया। पुलिस ने सिद्धू के कुछ पुराने इंटरव्यू और 25 जनवरी की रात किसान आंदोलन के मंच से दिए उनके भाषण को बतौर सबूत चार्जशीट में पेश किया। सिद्धू पर लाल किले पर भीड़ को भड़काने और धार्मिक झंडा फहराने के लिए उकसाने का भी आरोप लगाया।

लाल किला हिंसा मामले में आरोपियों का केस लड़ चुके वकील वरिंदर सिंह संधू पुलिस के आरोपों से सहमत नहीं हैं। वे कहते हैं- ‘जब लोग लाल किला पहुंचे, तब सिद्धू होटल में सो रहे थे। उन्होंने जब देखा कि लोग लाल किला पहुंच गए हैं, तब वो मोटर साइकिल लेकर वहां पहुंचे। हमने होटल की सीसीटीवी फुटेज निकलवाई हैं।’

आरोपियों के वकील तेज प्रताप सिंह कहते हैं- ‘पुलिस के पास सारे सीसीटीवी फुटेज हैं, वो डिसक्लोज क्यों नहीं कर रहे कि कौन लीड कर रहा था। जिन 16 आरोपियों के खिलाफ पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की है, वो सभी पीसफुल रैली का हिस्सा थे। कोर्ट में अभी आरोप तय नहीं हुए हैं। हमारी कुछ एप्लिकेशन भी पेंडिंग हैं, जिनमें हमने मिस प्रिंटेड कॉपी मांगी हुई हैं।’

2022 में लाल किला हिंसा के आरोपी दीप सिद्धू की सड़क हादसे में मौत हो गई।

पुलिस का दावा : अचानक 95% बढ़ गई ट्रैक्टरों की खरीद

पुलिस ने हिंसा की साजिश का पता लगाने के लिए ट्रैक्टर एंड मैकेनाइजेशन एसोसिएशन से पंजाब-हरियाणा में हर महीने ट्रैक्टरों की बिक्री के आंकड़े मांगे थे। डेटा में पता चला कि नवंबर 2019 के मुकाबले नवंबर 2020 में पंजाब में ट्रैक्टरों की खरीद 43.53% बढ़ गई थी। दिसंबर 2019 के मुकाबले दिसंबर 2020 में पंजाब में ट्रैक्टरों की खरीद 95% और जनवरी 2020 के मुकाबले जनवरी 2021 में ट्रैक्टरों की बिक्री में 85.13% का इजाफा हुआ था।

जिन 16 आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट फाइल है, उन मुख्य आरोपियों में शामिल धरमिंदर सिंह हरमन दिल्ली में 2005 से ट्रांसपोर्ट का बिजनेस कर रहे हैं।

मूलरूप से पंजाब के रूपनगर जिले के रहने वाले धरमिंदर किसान आंदोलन के दौरान मेडिकल कैंप लगाते थे। उनका आरोप है कि आंदोलन को बदनाम करने के लिए सरकार ने 26 जनवरी की घटना ऐसी बनाई ताकि इसे कुचला जा सके।

26 जनवरी 2021 को हजारों की संख्या में किसान पंजाब, हरियाणा और दूसरे राज्यों से दिल्ली पहुंचे थे।
26 जनवरी 2021 को हजारों की संख्या में किसान पंजाब, हरियाणा और दूसरे राज्यों से दिल्ली पहुंचे थे।

26 जनवरी की घटना को याद कर धरमिंदर बताते हैं- ‘सिंघु बॉर्डर से सरवन सिंह पंधेर की जत्थेबंदी सुबह साढ़े 6 बजे चल पड़ी थी। हमने स्वरूप नगर की फुटओवर ब्रिज पर ‘गर्व से कहो हम भारतीय हैं’ का बैनर लगाया हुआ था। हमारी टीम ने वहां किसानों का स्वागत किया। जहां से करनाल बाईपास शुरू होता है, वहां पुलिस ने बैरिकेडिंग लगा रखी थी।

तय रूट के हिसाब से समयपुर बादली, ट्रांसपोर्ट नगर साइड से जाना था, लेकिन जब हम वहां पहुंचे तो देखा कि किसानों को उस तरफ न भेजकर बुराड़ी की ओर रिंग रोड पर बढ़ाया जा रहा था। किसान बाहर से आए थे, उन्हें दिल्ली के बारे में नहीं पता था। पुलिस चाहती तो रिंग रोड से लाल किला के बीच कहीं भी रास्ता बंद कर सकती थी, रोक सकती थी।’

दिल्ली पुलिस के मुताबिक खालिस्तानी आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू ने लाल किले पर खालिस्तानी झंडा फहराने वाले को 2,50,000 डॉलर यानी करीब 2 करोड़ रुपए इनाम में देने का ऐलान किया था।

इस आरोप पर धरमिंदर कहते हैं- ‘ये सब अफवाह है। किसी को कोई रुपया-पैसा नहीं मिला। कई लोगों को पुलिस ने जबरन जेल में डाल दिया। मैं जानता हूं कि जो आंदोलन में शामिल था, उसकी हालत कैसी है। 750 से ज्यादा किसान मारे गए। उनका हाल ना तो सरकार ने लिया, ना ही किसी जत्थेबंदी ने।’

26 जनवरी 2021, आंदोलनकारियों ने चारों तरफ से लाल किले को घेर रखा था।
26 जनवरी 2021, आंदोलनकारियों ने चारों तरफ से लाल किले को घेर रखा था।

पंजाब के कथावाचक इकबाल सिंह को चार्जशीट में खालिस्तान समर्थक बताया गया है। पुलिस के मुताबिक 25 जनवरी की रात को इकबाल, लाल किला के पास रेकी करने गए थे। पुलिस ने इसके लिए सीसीटीवी फुटेज और फोटो सबूत के तौर पर पेश किए हैं।

इकबाल कहते हैं- ‘मैं 25 जनवरी की रात सिंघु बॉर्डर से 12 बजे गुरुद्वारा शीशगंज साहिब पहुंचा। वहां एक कमरा लेकर ठहरा था। मेरी गाड़ी चांदनी चौक मेट्रो स्टेशन के पास खड़ी थी। सुरक्षा के लिहाज से मैं उसे शीशगंज गुरुद्वारे के नीचे पार्किंग में रखना चाहता था। इसीलिए मैं लाल किला गया, लेकिन वहां पत्थर रखे हुए थे, तो वापस आ गया। मैंने फेसबुक लाइव भी की, लेकिन वो वीडियो पुलिस ने डिलीट कर दी।’

इकबाल सिंह, किसान आंदोलन में भी कथा करने जाते थे। पुलिस के मुताबिक उनकी बेटी ने किसी रिश्तेदार से बातचीत में पैसे मिलने की बात कही थी।

इस आरोप पर इकबाल कहते हैं- ‘बेटी ने मुझे बताया कि आप पर 50 हजार रुपए का इनाम रखा है। मैंने कहा कि ये तो इतना बड़ा काम हो गया, लोगों में फैल गया, इसका तो 50 लाख इनाम होना चाहिए था। ताकि मैं किसी से खुद को अरेस्ट करवा लेता और मुझे भी कुछ पैसे मिल जाते। तो उन्होंने बात बना दी कि इसको 50 लाख मिलने वाला है।’

लाल किला कांड के आरोपी इकबाल सिंह। (बीच में नीले कपड़े में)
लाल किला कांड के आरोपी इकबाल सिंह। (बीच में नीले कपड़े में)

लाल किला हिंसा मामले में आरोपियों का केस लड़ चुके वकील वरिंदर सिंह संधू बताते हैं- ’किसान नेताओं ने पूरे देश से लोगों को बुला लिया और खुद कहीं नहीं थे। कुछ FIR में 32 किसान नेता भी नामजद आरोपी हैं, लेकिन इन 32 किसान नेताओं में से किसी को आज तक पुलिस ने पूछताछ के लिए नहीं बुलाया, न कोई नोटिस दी। आखिर इन लोगों को ऐसी क्या कन्फर्मेशन दी गई जो इन्हें कोई डर नहीं है और वो आराम से घूम रहे हैं।’

लाल किला हिंसा के आरोपियों को किसान संगठनों से मदद न मिलने के आरोपों पर किसान नेता अविक साहा कहते हैं- ‘किसान संगठनों ने लाल किला जाने के लिए नहीं कहा था। अगर आप लाल किला गलती से चले गए, तो मीनार पर चढ़कर झंडा क्यों लहराया? आंदोलन का रूप ऐसा हो गया कि इसमें दूध वाले, ऑटो वाले, स्टूडेंट भी जुड़ गए। आप सबकी जिम्मेदारी लेने के लिए मुझे कैसे कह सकते हैं?

क्राइम सीन पर जो लोग थे, उन सबका चेहरा है। किसान नेताओं में डर का माहौल बनाने की कोशिश काम नहीं आई। इसलिए केस अब ठंडे बस्ते में है। न सरकार इस केस में इंट्रेस्ट ले रही है और न ही हम ले रहे हैं। सरकार को पता है कि अगर वो इस केस में ज्यादा इंट्रेस्ट लेगी, तो फिर चिनगारी भड़केगी।’

संयुक्त किसान मोर्चा के किसान नेता अविक साहा।
संयुक्त किसान मोर्चा के किसान नेता अविक साहा।

आरोपियों में से एक हरप्रीत सिंह जॉनी दिल्ली के कीर्ति नगर में फर्नीचर का बिजनेस करते हैं। वे कहते हैं, कोई भी ट्रैक्टर मार्च को लीड नहीं कर रहा था, बस हुजूम चल रहा था। इकबाल सिंह हों या जुगराज सिंह, हम लोग एक-दूसरे को जानते तक नहीं थे। जो पुलिस के हाथ में आ गया, उनको उन्होंने काबू कर लिया।

हम 4 साल से केस लड़ रहे, कभी आईओ नहीं आते, कभी डेट नहीं मिलती, कभी जज साहब नहीं आते, तो केस लटकता ही जा रहा है। मैं केस को स्पीडअप कराने हाईकोर्ट गया, लेकिन उन्होंने निचली अदालत में जाने को कहा।’

किसान नेता अविक साहा कहते हैं- ‘ट्रैक्टर मार्च को दिल्ली पुलिस कंट्रोल कर रही थी। एक पॉइंट पर उन्होंने इस ट्रैक्टर परेड को डायवर्ट किया। योगेंद्र यादव और जोगिंदर सिंह उगराहां को समझ आया कि ये तो हमें दिल्ली घुसा रहे हैं। हम सारे लोग गाड़ी रिवर्स करके निकल गए। जब परेड दिल्ली में घुसी तो किसान मोर्चा के जितने भी कोर संगठन और लीडरशिप थी, वो मुंह घुमाकर दिल्ली के बाहर चले गए। हमारा सरकार से टकराव या भिड़ने का कोई इरादा नहीं था।’

अविक साहा कहते हैं, 4 साल में पुलिस ने मुझसे किसी तरह का कोई सम्पर्क नहीं किया। मेरे पास अभी तक न तो आरोपी और न ही गवाह के तौर पर कोई समन आया है। जो जेल जाने के लिए तैयार है, उसको आप जेल का डर क्या दिखाएंगे? 9 दिसंबर 2021 को जो सेटलमेंट हुई, उसमें ये बात थी कि सभी केसेज वापस लिए जाएंगे। हम कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से मिले थे।’

26 जनवरी को हुई हिंसा में जिस किसान की जान गई थी, उसका नाम नवरीत था। उनके दादा हरदीप सिंह का आरोप है कि ट्रैक्टर पलटने से पहले ही नवरीत को गोली लगी थी, लेकिन उसकी जांच नहीं हुई।

अपने पोते नवरीत की तस्वीर दिखाते हुए हरदीप सिंह। 26 जनवरी 2021 को ट्रैक्टर मार्च के दौरान नवरीत की मौत हो गई थी।
अपने पोते नवरीत की तस्वीर दिखाते हुए हरदीप सिंह। 26 जनवरी 2021 को ट्रैक्टर मार्च के दौरान नवरीत की मौत हो गई थी।

नवरीत के पिता सरविक्रमजीत सिंह कहते हैं- कोर्ट में हमारा नंबर ही नहीं आता, जब तक हमारा केस आता है, कोर्ट का टाइम पूरा हो जाता है। उसकी इतनी बड़ी शहादत है, लोगों ने इतना मान-सम्मान दिया। उन चीजों को देखकर ही ताकत मिलती गई, गम से उबरते गए। ऐसा कोई गुरुद्वारा नहीं, जहां उसके नाम पर अरदास नहीं हुई, हर जगह उसको याद किया जाता है।’

नवरीत के पिता कहते हैं- ‘बेटा पहले ऑस्ट्रेलिया में रहता था। वो पढ़ाई करने गया था। फिर वहीं गाड़ी चलाने का काम करने लगा। उसकी शादी 2019 में हुई थी। वो पत्नी के साथ घर पर शादी का फंक्शन सेलिब्रेट करने आया था। उसी दौरान ये प्रोटेस्ट शुरू हो गए तो ये उसमें जाने लगा।’

इस केस में गिरफ्तार सभी आरोपी फिलहाल जमानत पर बाहर हैं। 306 लोगों की गवाही के बावजूद पुलिस अब तक अपने आरोपों को कोर्ट में साबित नहीं कर सकी है। यहां तक कि खंभे पर चढ़कर लाल किले की प्राचीर से धार्मिक झंडा फहराने वाले जुगराज सिंह के खिलाफ पुलिस ने चार्जशीट तक फाइल नहीं की है।

तब इन्वेस्टिगेटिंग ऑफिसर और अब क्राइम ब्रांच के असिस्टेंट पुलिस कमिश्नर पंकज अरोड़ा को याद ही नहीं कि उन्होंने जुगराज सिंह को कभी पूछताछ के लिए बुलाया भी या नहीं।

लाल किला कांड को लेकर हमने किसान नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी, राकेश टिकैत और दर्शन पाल से कॉन्टैक्ट करने की कोशिश की, लेकिन उनसे बात नहीं हो पाई।

26 जनवरी की हिंसा के बाद दिल्ली में लोकसभा चुनाव हुए। सभी सातों सीटें बीजेपी ने जीत लीं। इस बार विधानसभा चुनाव में लाल किला कांड मुद्दा नहीं है।

सीनियर जर्नलिस्ट आदेश रावल बताते हैं- ‘हरियाणा चुनाव में लग रहा था कि किसान आंदोलन और लाल किला कांड का असर दिखेगा, पर ऐसा नहीं हुआ। दिल्ली विधानसभा चुनाव में तो कहीं इसकी चर्चा भी नहीं है। कोई पार्टी इस पर फोकस नहीं कर रही है। मुझे नहीं लगता कि विधानसभा चुनाव में इसका कुछ असर पड़ेगा।’

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