कांग्रेस क्यों अपना खोया हुआ जनाधार हासिल नहीं कर पा रही है, इसका पता गुजरात पहुंचे राहुल गांधी के इस विचित्र कथन से मिलता है कि यहां पार्टी के आधे नेता भाजपा से मिले हुए हैं।

उन्होंने यह भी कहा कि इन्हें निकालना पड़े तो निकाल देना चाहिए। आखिर उन्हें कैसे पता चला कि गुजरात में कांग्रेस के आधे नेता भाजपा से मिले हुए हैं? यदि एक क्षण के लिए यह मान भी लिया जाए कि वह जो कुछ कह रहे हैं, वह सच है तो फिर ऐसे 20-30 नेताओं को पार्टी से निकालने से कौन रोक रहा है?

यह पहली बार नहीं है, जब राहुल गांधी ने अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं की निष्ठा पर सवाल उठाकर उन्हें हतोत्साहित किया हो। हैरानी नहीं कि उनके इस बयान के चलते गुजरात के कांग्रेस नेता एक-दूसरे को संदेह की निगाह से देखें और इसके नतीजे में पार्टी के उत्थान की राह और अधिक कठिन हो जाए।

यह साधारण बात नहीं कि राहुल गांधी जैसा वरिष्ठ नेता अपने नेताओं की निष्ठा को इस तरह खुलेआम संदिग्ध करार दे। ऐसा लगता है कि वह इससे प्रसन्न नहीं कि उनके नेता उनकी तरह भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी के प्रति आक्रामक नहीं हैं। बेहतर हो कि कोई उन्हें यह याद दिलाए कि भाजपा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और मोदी के प्रति उनकी अनावश्यक आक्रामकता का कांग्रेस को कुछ खास लाभ नहीं मिला है।

राहुल गांधी इसके पहले यह कह चुके हैं कि कांग्रेस को भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से डरने वाले नेता नहीं चाहिए। कोई नहीं जानता कि उन कांग्रेस नेताओं का क्या हुआ, जिनकी नजर में वे कथित तौर पर भाजपा और आरएसएस से डरते थे। इसकी भी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि नवजोत सिंह सिद्धू जैसे भाजपा से कांग्रेस में आए कई नेता राहुल गांधी के करीबी रह चुके हैं।

गुजरात दौरे पर गए राहुल गांधी ने यह भी कहा कि कांग्रेस में बब्बर शेर हैं, लेकिन वे बंधे हुए हैं। समझना कठिन है कि वह कहना क्या चाहते हैं? कहीं वह यह तो नहीं कहना चाहते कि यही बब्बर शेर जैसे कांग्रेस नेता भाजपा से मिले हुए हैं? पता नहीं, उनके कहने का मंतव्य क्या है, लेकिन उन्होंने जिस तरह कांग्रेस नेताओं को बरात के घोड़े सरीखा करार दिया, वह उनका निरादर ही है।

इसकी संभवना नहीं कि उनकी ऐसी विचित्र खरी-खोटी से गुजरात के कांग्रेस नेता और कार्यकर्ता उत्साहित होंगे। बात केवल गुजरात की ही नहीं है, अन्य राज्यों में भी कांग्रेस दिशाहीन और उत्साहहीन नजर आती है। इसका मुख्य कारण पार्टी नेतृत्व की दिशाहीनता ही है। यह दिशाहीनता एक लंबे समय से देखने को मिल रही है और इसी कारण कांग्रेस आज उन राज्यों में भी तीसरे-चौथे नंबर का दल बनकर रह गई है, जो कभी उसके गढ़ थे।