मप्र में 438 रियल एस्टेट प्रोजेक्ट अटके:भोपाल के 60, छह माह से एक काे भी मंजूरी नहीं; इंदौर-भाेपाल में 25 हजार प्रवासी मजदूर लॉकडाउन में फंसे, राशन तक को मोहताज
मप्र के रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरण (रेरा) में पिछले 6 माह से एक भी प्रोजेक्ट को मंजूरी नहीं मिली। नए चेयरमैन के पदभार ग्रहण करने के एक माह बाद भी पेंडेंसी जस की तस है। करीब 40 हजार कराेड़ रु. के 438 आवासीय और व्यावसायिक प्रोजेक्ट की फाइलें रेरा में अटकी हैं। इनमें करीब एक लाख से अधिक घर बनाए जाने थे।
मंजूरी न मिलने से रियल एस्टेट डेवलपर ग्राहकों से बुकिंग राशि नहीं ले पा रहे हैं, जो लोकेशन के आधार पर घर खरीदने की मंशा जता चुके हैं। कोरोना के लॉकडाउन के बाद भी मप्र सरकार ने निर्माण गतिविधियों को अनुमति दी हुई थी। लेकिन, काम शुरू न होने से शहरों में आए सैकड़ों प्रवासी मजदूरों फंस गए हैं। शहरों में इनके पास राशन कार्ड न होने से राज्य सरकार द्वारा दिए जाने वाला मुफ्त राशन भी इन्हें नहीं मिल पा रहा है। नतीजतन इनके सामने खाने पीने तक का संकट खड़ा हो गया है।
250 मकान के एक प्राेजेक्ट की लागत 100 कराेड़ तक
कन्फेडरेशन ऑफ रियल एस्टेट डेवलपर्स ऑफ इंडिया (क्रेडाई) भोपाल के सचिव समीर सभरवाल कहते हैं कि एक प्रोजेक्ट में औसतन 250 मकान बनाए जाते हैं। इसकी लागत करीब 90-100 करोड़ होती है। श्रमिकों को मिलाकर करीब 100 लोगों को एक साल का रोजगार मिलता है। इस आधार पर हम कह सकते हैं कि 438 प्रोजेक्ट की लागत करीब 40 हजार करोड़ रुपए तक हो सकती है। जो 40 हजार लोगों को रोजगार देते।
मैंने ताे पिछले महीने ही काम संभाला है
यह सच है कि पिछले 6 महीने से रियल एस्टेट प्रोजेक्ट को रेरा की मंजूरी नहीं मिली। लेकिन मैंने तो पिछले महीने की कार्यकाल संभाला। फिर लाॅकडाउन लग गया। तकनीकी सदस्य की नियुक्ति नहीं हो पाई। 10% से ज्यादा हम स्टॉफ बुला ही नहीं सकते। ऐसे में प्रोजेक्ट को मंजूरी देना मुश्किल था। इस समय हमने रेरा अधिनियम के सेक्शन 84-85 के तहत नियम बनाए हैं। मप्र देश का इकलौता राज्य है जहां यह नियम नहीं बनाए गए। अब तक इसके बिना कैसे काम हुआ मैं नहीं जानता।
– एपी श्रीवास्तव, चेयरमैन, रेरा, मप्र
3.5 साल से बिना नियमों के चल रहा रेरा
रेरा के अधिकारिक सूत्रों ने बताया कि भले ही मप्र में सबसे पहले रेरा का गठन किया गया हो, लेकिन इसका संचालन कैसे होगा, इसके नियम अब तक तय नहीं है। रेरा अधिनियम के सेक्शन 85-86 के तहत राज्य सरकार को रेरा के नियम बनाने थे। इससे यह तय होता कि रेरा चेयरमैन, अपीलीय प्राधिकरण और राज्य सरकार के प्रशासनिक अधिकारियों की इस कानून में क्या-क्या जिम्मेदारियां हैं।