यमुना की सफाई के लिए केंद्र का भेजा 2419 करोड़ क्या विज्ञापन पर ही खर्च दिया? BJP ने केजरीवाल पर साधा निशाना

जून 2021 में जलशक्ति मंत्री गजेंद्र शेखावत ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जो चिट्ठी लिखी थी उसमें उन्होंने यमुना के प्रदूषित पानी को लेकर चिंता जताई थी और कहा था कि यमुना को प्रदूषित करने में दिल्ली की भूमिका सबसे ज्यादा है।

नई दिल्ली। छठ त्यौहार के मौके पर दिल्ली में यमुना के प्रदूषण का मुद्दा एक बार फिर से सुर्खियों में है और इस मौके पर भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर निशाना साधा है। भाजपा आईटी सेल के इंचार्ज अमित मालवीय ने मुख्यमंत्री से सवाल पूछा है कि केंद्र की तरफ से केजरीवाल सरकार को यमुना की सफाई के लिए जो पैसा भेजा गया है वह कहां गया? अमित मालवीय ने मुख्यमंत्री केजरीवाल से पूछा है कि क्या सारा पैसा खुद को प्रमोट करने कि लिए विज्ञापनों पर खर्च कर दिया है?

अमित मालवीय ने जलशक्ति मंत्री गजेंद्र शेखावत की जून 2021 में लिखी एक चिट्ठी को सोशल मीडिया पर शेयर करते हुए दिल्ली के मुख्यमंत्री से सवाल किया है। अमित मालवीय ने लिखा है, “यमुना की सफाई के लिए केंद्र सरकार अभी तक अरविंद केजरीवाल को 2419 करोड़ रुपए दे चुकी है, सिर्फ सफाई के लिए, लेकिन यमुना पहले से भी ज्यादा प्रदूषित हो चुकी है, सारा पैसा कहां गया? क्या अरविंद केजरीवाल ने सारा पैसा खुद को प्रोमोट करने के लिए विज्ञापनों पर खर्च दिया? शर्म आनी चाहिए”

जून 2021 में जलशक्ति मंत्री गजेंद्र शेखावत ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जो चिट्ठी लिखी थी उसमें उन्होंने यमुना के प्रदूषित पानी को लेकर चिंता जताई थी और कहा था कि यमुना को प्रदूषित करने में दिल्ली की भूमिका सबसे ज्यादा है। चिट्ठी में उन्होंने लिखा था कि यमुना की लंबाई का सिर्फ 2 प्रतिशत हिस्सा दिल्ली के दायरे में आता है लेकिन वह हिस्सा यमुना के 80 प्रतिशत प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है। उन्होंने लिखा था कि दिल्ली के अंदर आकर पवित्र यमुना नदी एक गंदे नाले में बदल जाती है।

चिट्ठी में गजेंद्र शेखावत ने दिल्ली के मुख्यमंत्री को लिखा था कि नमामी गंगे परियोजना के तहत केंद्र ने दिल्ली सरकार को यमुना की सफाई की 13 परियोजनाओं के लिए 2419 करोड़ रुपए दिए हैं और इसके तहत रोजाना 138.5 करोड़ लीटर पानी को साफ करने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन दुर्भाग्यवश दिल्ली सरकार ने अत्यंत महत्वपूर्ण मामले को गंभीरता से नहीं लिया है।

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