हमीदिया की पड़ताल …..फायर सेफ्टी का बजट 25 लाख, पर खर्च वहां किया, जहां अफसर-डॉक्टर बैठते हैं
- दलील- मेडिकल कॉलेज में 8 से 10 घंटे बैठते हैं अफसर-डॉक्टर, इसलिए ज्यादा जरूरत…..
हमीदिया की ओपीडी और आईपीडी में आगजनी को रोकने का प्लान गांधी मेडिकल कॉलेज (जीएमसी) प्रबंधन ने कभी नहीं बनाया, जबकि अस्पताल की ओपीडी में रोज 2000 और आईपीडी में 800 मरीज पहुंचते हैं। कॉलेज की फायनेंस कमेटी की मीटिंग इसी साल 24 जून में हुई थी। इसमें कॉलेज और हॉस्टल में फायर सेफ्टी के इंतजामों के लिए 25 लाख रुपए खर्च करने को कॉलेज के तत्कालीन डीन डॉ. जितेन शुक्ला ने मंजूरी दी थी।
यह खुलासा जीएमसी स्वशासी समिति की फायनेंस कमेटी के दस्तावेजों की पड़ताल में हुआ है। समिति के एक सदस्य के मुताबिक फायनेंस कमेटी की मीटिंग में मेडिकल कॉलेज बिल्डिंग और स्टूडेंट्स हॉस्टल्स में फायर फाइटिंग सिस्टम की जरूरत का प्रस्ताव रखा गया था।
प्रस्ताव को समिति से मंजूर कराने मीटिंग में दलील दी गई थी कि कॉलेज में यूजी, पीजी, नर्सिंग और पैरामेडिकल स्टूडेंट्स के अलावा अफसर, डॉक्टर, नर्सिंग स्टॉफ सहित दूसरे कर्मचारी 8 से 10 घंटे का समय बिताते हैं, जबकि कॉलेज के हॉस्टल्स में 1000 से ज्यादा स्टूडेंट्स रहते हैं। इस कारण कॉलेज और हॉस्टल में फायर फाइटिंग सिस्टम की जरूरत है।
समिति सदस्यों की इस दलील पर तत्कालीन कॉलेज डीन एवं फायनेंस कमेटी के प्रमुख शुक्ला ने 25 लाख का बजट फायर फाइटिंग सिस्टम के लिए स्वीकृत किया था। मेडिकल कॉलेज के नए बने एडमिन ब्लॉक में नया फायर सेफ्टी सिस्टम लगवाया गया है।
एक साल में भी नहीं बना फायर एक्ट
सार्वजनिक उपयोग में आने वाली इमारतों में आग से बचाव के इंतजाम की गाइड लाइन के साथ केंद्र सरकार ने पिछले साल सभी राज्यों को फायर एक्ट बनाने के निर्देश के साथ ही एक्ट का प्रारूप भी भेजा था, लेकिन मध्यप्रदेश में यह एक्ट अभी तक लागू नहीं किया जा सका है। गुजरात, दिल्ली और महाराष्ट्र में अलग से फायर एक्ट लागू कर दिया गया है।
अस्पताल में ही मिली लापता नवजात, लेकिन पुलिस अफसरों के बयान ने परिजनों को ही दोषी बना दिया
एसएनसीयू में लगी आग के बाद मची अफरा-तफरी में गुम हुई नवजात अस्पताल में ही मिल गई। लेकिन, पुलिस अफसरों की ओर से दिए गए एक बयान ने परिजनों को ही दोषी बना दिया। दरअसल, एएसपी रामसनेही मिश्रा का बयान आया था कि जिस नवजात के गुम होने की शिकायत की गई थी वह पुलिस को परिजनाें के पास ही मिली है।
परिजन उसे चुपके से घर ले आए थे। मामले ने तूल पकड़ा तो गंभीरता से जांच कराई गई और स्थिति स्पष्ट हुई। दरअसल, बड़वई गांधी नगर की रहने वाली अर्सी खान पति मंसूर की बेटी का सोमवार रात से ही पता नहीं चला था। मंगलवार दोपहर अर्सी की मां अस्मा हमीदिया पहुंचीं। अस्पताल प्रबंधन व पुलिस अधिकारियों को लिखित शिकायत की।
तब अस्पताल प्रबंधन ने नवजात की तलाश शुरू की। नवजात के हाथ पर लगी चिट से रात में ही उसकी पहचान हुई। ऐसे में अस्पताल प्रबंधन ने बुधवार सुबह करीब 8 बजे अर्सी व मंसूर को बुलाया और नवजात उनके सौंप दी। मामले में एएसपी रामसनेही मिश्रा का कहना है कि परिजनों ने मंगलवार को शिकायत की थी कि उनकी नवजात गुम है। बुधवार सुबह पुलिस टीम उनके घर भेजी गई थी, तब बच्ची उनके घर पर मिली। परिजनों ने कहा है कि अस्पताल ने सुबह बच्ची सौंपी, जबकि बच्ची रात में ही मिल गई थी।
प्रारंभिक जांच रिपोर्ट- प्लग में स्पार्किंग से निकली चिंगारी ने पकड़ी थी आग
कमला नेहरू अस्पताल के चिल्ड्रन वार्ड में दो दिन पहले लगी आग की मुख्य वजह आईसीयू वार्ड के प्लग में स्पार्किंग होना था। चूंकि आईसीयू वार्ड में ऑक्सीजन ज्यादा रहती है इसलिए स्पार्किंग से निकली चिंगारी ने आग पकड़ ली। मौके पर मौजूद डॉक्टरों और स्टाफ ने तत्काल फायर इंस्टीग्यूशर से आग बुझाना शुरू किया।
लेकिन तब तक स्विच बोर्ड के अंदर बिजली के तारों तक आग पहुंच चुकी थी। तार जलने से गाढ़ा धुआं वार्ड में भर गया। कलेक्टर अविनाश लवानिया द्वारा घटना के संबंध में शिशु राेग विभाग की एचओडी डाॅ. ज्याेत्सना श्रीवास्तव के बयान के आधार पर यह प्रारंभिक रिपाेर्ट तैयार की। इस रिपाेर्ट काे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की मीटिंग में बुधवार को अपर मुख्य सचिव मोहम्मद सुलेमान ने प्रस्तुत किया।
बच्चा किसका- डीएनए सैंपल लिया, ताकि सामने आए सच
नवजातों की मौत के मामले में परिजनों ने प्रबंधन पर झूठी कहानी गढ़ने का आरोप लगाया है। कुछ परिजनों का कहना है कि हमें बताया गया कि हादसे से दो घंटे पहले नवजातों की मौत हो गई थी, जबकि बच्चों के शरीर पर आग से झुलसने के निशान थे।
केस – 1 डॉक्टर बाेले- हादसे के पहले हुई मौत, जबकि नवजात झुलसी हुई थी
विदिशा निवासी प्रभा पति अजब सिंह ने 5 नवंबर को बेटी काे जन्म दिया था। प्री-मेच्योर डिलीवरी होने से कमजोर थी। उसे कमला नेहरू में भर्ती किया था। मंगलवार दोपहर 3 बजे अजब सिंह अस्पताल पहुंचे तो डॉक्टरों ने बताया कि हादसे के पहले बच्ची की मौत हो चुकी थी। अजब ने बताया कि विश्रामघाट पर जब देखा तो बच्ची के कमर से ऊपर का हिस्सा जला हुआ था।
केस -2 बेटे के शव को साफ कर दिया पर काले निशान साफ दिख रहे थे
भानपुर के आमिर खान की पत्नी तरन्नुम ने 5 नवंबर को बेटे को जन्म दिया था। बच्चा कमजोर था ऐसे में कमला नेहरू अस्पताल भेजा था। आमिर ने बताया कि सोमवार शाम बेटा स्वस्थ था। रात 9 बजे लौटा तो आग बुझाने का काम चल रहा था। रात 3 बजे बताया कि हादसे से दो घंटे पहले ही बेटे की मौत हो चुकी थी। जो शव दिया उसे साफ किया गया था, लेकिन काले निशान दिखे थे।
इधर जो शव हमें दिया जा रहा था, वह हमारे बच्चे का है ही नहीं
ओम नगर निवासी पूनम शाक्या ने बताया कि उनकी बहन सोनाली ने बेटे का जन्म दिया था। बच्चे का जो शव हमें दिया जा रहा है वह हमारे बेटे का नहीं है। परिजनों के कहने पर बुधवार को सोनाली का डीएनए सैंपल लिया गया है। डॉक्टरों ने परिजनों से कहा है कि वे बच्चे का शव लेकर उसे दफना दें। बाकी तो डीएनए रिपोर्ट आने के बाद ही स्थिति स्पष्ट होगी।