मायावती के प्रत्याशी, भाजपा के लिए उप-योगी … पश्चिमी यूपी में 23 सीटें ऐसी, जहां पिछले चुनाव के सपा-रालोद के वोट मिला दें तो उसकी जीत…भाजपा क्या करेगी

सपा और रालोद के एक साथ लड़ने से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा के सामने मुश्किलें खड़ी हो गई हैं, लेकिन यह मुश्किल बसपा काफी हद तक आसान करती नजर आ रही है। दरअसल, 2017 के चुनाव में रालोद और सपा ने अकेले चुनाव लड़ा था। पिछले चुनाव में सपा और रालोद को मिले वोटों की संख्या को मिला दें तो 23 सीटों पर यह गठबंधन भाजपा को पछाड़ देता है, पर इस आमने-सामने की लड़ाई में पीछे दौड़ रही बसपा इन सीटों पर इस बार 2022 के चुनाव में जाट और मुस्लिम उम्मीदवार उतारकर सपा गठबंधन की उम्मीदों को धूमिल कर रही है और भाजपा को बिना गठबंधन के ही गिफ्ट दे रही है।

वेस्ट यूपी पर रालोद का आगरा से लेकर सहारनपुर तक जाट प्रभावित 40 सीटों पर दावा है। अब सपा के साथ के बाद अखिलेश-जयंत गठबंधन को 2017 के मुकाबले मज़बूती मिली है।

दैनिक भास्कर ने इन्हीं 40 सीटों पर 2017 के जीत हार के फासले को देखते हुए विश्लेषण किया है। इनमें से 23 सीटों पर तो सीधे तौर पर गठबंधन भाजपा को मात दे रहा है, लेकिन बसपा ने जाट और मुस्लिम प्रत्याशी उतार दिए हैं। इसका असर भाजपा के पक्ष में जाता दिख रहा है।

आइए सबसे पहले 23 सीटों पर समझते हैं…कि किस तरह भाजपा और सपा की आमने सामने की सीधी लड़ाई में बसपा, भाजपा को आगे निकाल रही है।

1. शामली विधानसभा सीट
साल 2017 के चुनाव में यह सीट भाजपा के खाते में गई थी। भाजपा को 70, 085 वोट मिले थे। वहीं, सपा को 40, 365 वोट जबकि रालोद को 33, 551 वोट मिले थे। सपा और रालोद के वोटों को जोड़ दें तो यह आंकड़ा 73 हजार को पार कर जाता है। यानी, भाजपा को मिले वोटों से ज्यादा हो जाता है।

बसपा का रोल – इस सीट पर बसपा ने जाट उम्मीदवार उतारा है। जाहिर है, इससे सपा गठबंधन को नुकसान होगा।

2. बुढ़ाना विधानसभा सीट
साल 2017 के चुनाव में इस सीट पर भाजपा को जीत मिली थी। भाजपा उम्मीदवार को 97, 781 वोट मिले थे। सपा को 84, 580 और रालोद को 23, 732 वोट मिले थे। इस हिसाब से दोनों को मिला दें तो भाजपा से ज्यादा वोट हो रहे हैं।

बसपा का रोल – बसपा ने यहां मुस्लिम उम्मीदवार उतारा है। जाहिर है, इससे सपा को नुकसान होगा।

2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा और सपा एक साथ थी, लेकिन चुनाव बाद दोनों पार्टियां अलग हो गईं। 2022 के इस विधानसभा चुनाव में मायावती अखिलेश का नुकसान करती नजर आ रही हैं।
2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा और सपा एक साथ थी, लेकिन चुनाव बाद दोनों पार्टियां अलग हो गईं। 2022 के इस विधानसभा चुनाव में मायावती अखिलेश का नुकसान करती नजर आ रही हैं।

3. मीरापुर विधानसभा सीट
साल 2017 के चुनाव में भाजपा की जीत हुई थी। भाजपा को 69, 035 वोट मिले, जबकि सपा को 68, 842 और रालोद को 22, 751 वोट मिले थे। दोनों को मिला दें तो भाजपा उम्मीदवार को मिले वोटों से यह नंबर काफी ज्यादा हो जाता है।

बसपा का रोल- बसपा ने यहां मुस्लिम उम्मीदवार उतारा है। इससे सपा को नुकसान होगा।

4. कांठ विधानसभा सीट
साल 2017 के चुनाव में भाजपा को जीत मिली थी। भाजपा उम्मीदवार को 76, 307 वोट मिले थे। सपा को 73, 959 और रालोद को 3, 458 वोट मिले थे। दोनों को मिला दें तो भाजपा पीछे हो जाती है।

बसपा का रोल – इस सीट पर बसपा ने मुस्लिम उम्मीदवार उतारा है।

5. सिवालखास विधानसभा सीट
साल 2017 के चुनाव में इस सीट पर भाजपा को जीत मिली थी। भाजपा उम्मीदवार को 72, 842 वोट मिले थे। सपा को 61, 421 और रालोद को 44, 710 वोट मिले थे। इन दोनों को मिला दें को भाजपा के वोटों का आंकड़ा काफी कम रह जाता है।

बसपा का रोल – मायावती ने इस सीट पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारा है।

6. पुरकाजी विधानसभा सीट
इस सीट पर साल 2017 के चुनाव में भाजपा जीती थी। भाजपा के उम्मीदवार को 77, 491 वोट मिले थे, जबकि सपा 66,238 और आरएलडी को 8, 227 वोट मिले थे। दोनों के वोटों को मिला दें तो आंकड़ा भाजपा को मिले वोट के करीब पहुंच जाता है।

बसपा का रोल – दिलचस्प बात ये है कि पिछली बार की तरह ही बसपा ने अपने उम्मीदवार को रिपीट कर दिया है। पिछली बार भी बसपा ने सपा गठबंधन के वोट काटे थे। इस बार ऐसा ही देखने को मिल सकता है।

2017 के चुनाव में रालोद और सपा ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। सपा का कांग्रेस के साथ गठबंधन था, जिसका कुछ खास फायदा नहीं हुआ।
2017 के चुनाव में रालोद और सपा ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। सपा का कांग्रेस के साथ गठबंधन था, जिसका कुछ खास फायदा नहीं हुआ।

7. मुजफ्फरनगर विधानसभा सीट
पिछली बार के चुनाव में इस सीट पर भाजपा जीती थी। भाजपा उम्मीदवार को 97, 838 वोट मिले थे, जबकि सपा को 87,134 और रालोद को 5, 640 वोट मिले थे। दोनों के वोटों को जोड़ दें तो सपा गठबंधन मुकाबले में आ जाता है।

बसपा का रोल – पिछली बार के चुनाव में बसपा ने ओबीसी को टिकट देकर जीत-हार में निर्णायक भूमिका निभाई थी, जबकि इस बार पाल बिरादरी को चेहरा बनाया है।

8. बड़ौत विधानसभा सीट
इस सीट पर साल 2017 के चुनाव में भाजपा को जीत मिली थी। भाजपा के उम्मीदवार को 79, 427 वोट मिले थे। सपा को 52, 941 और रालोद को 28,376 वोट मिले थे। दोनों के वोटों को मिला दें तो भाजपा इसके आसपास भी नहीं ठहर रही है।

बसपा का रोल – इस सीट पर इस बार भी बसपा ने ब्राह्मण चेहरे पिछली बार के चुनाव में भी उतारा था। सपा को नुकसान हुआ था। इस बार भी सपा ने ब्राह्मण उम्मीदवार उतारा है।

9. मुरादाबाद नगर विधानसभा सीट
इस सीट पर 2017 में मामूली अंतर से सपा हार गई थी। भाजपा को 1, 23 467 वोट मिले थे। सपा उम्मीदवार को 1, 20 274 वोट मिले थे। रालोद के 1035 वोट जोड़ेंगे तो गठबंधन के नंबर बढ़ेंगे, लेकिन इस सीट पर हार की वजह बसपा रही थी।

बसपा का रोल – बसपा ने इस बार भी इस सीट पर मुस्लिम कैंडिडेट उतार दिया है।

10. बरहापुर विधानसभा सीट
इस सीट पर भाजपा को जीत मिली थी। भाजपा को 78, 744 वोट मिले थे, जबकि सपा को 68, 920 वोट मिले। रालोद के 3, 449 वोट जोड़ दिए जाएं तो गठबंधन काफी हद तक मुकाबले में आ रहा है।

बसपा का रोल – बसपा ने इस बार भी इस सीट मुस्लिम उम्मीदवार उतारा है। पिछली बार के मुस्लिम उम्मीदवार ने सपा के उम्मीदवार का बड़ा नुकसान किया था।

11. किठौर विधानसभा सीट
इस सीट पर 2017 में भाजपा को जीत मिली थी। भाजपा को 90, 622 तो सपा के उम्मीदवार को 79, 800 वोट मिले थे। रालोद के 6, 598 वोट जोड़ दिए जाएं तो गठबंधन मजबूत हो रहा है, और इस बार का मुकाबला कड़ा होगा।

बसपा का रोल – बसपा ने मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट दिया है। मुस्लिम वोट कटेंगे। गठबंधन पीछे रह सकता है।

2022 के चुनाव के लिए सपा और रालोद एक साथ मिलकर लड़ रहे हैं। जाट और किसान वोटर गठबंधन के खाते में आ सकते हैं।
2022 के चुनाव के लिए सपा और रालोद एक साथ मिलकर लड़ रहे हैं। जाट और किसान वोटर गठबंधन के खाते में आ सकते हैं।

12. कुंदरकी विधानसभा सीट
इस सीट पर साल 2017 के चुनाव में सपा को जीत मिली थी, जबकि भाजपा कड़े मुकाबले के साथ नंबर दो पर रही थी। सपा को 1, 10, 561 वोट मिले थे। भाजपा को 99, 740 वोट मिले थे। रालोद के 4, 078 वोट और जोड़ दिए जाएं तो सपा और मजबूत हो जाती है।

बसपा का रोल – बसपा ने मुस्लिम उम्मीदवार उतारा है। इससे मुस्लिम वोट कटेंगे और भाजपा को फायदा मिलेगा।

13. बिलारी विधानसभा सीट
इस सीट पर साल 2017 में सपा ने जीत हासिल की थी। सपा को 85, 682 वोट तो भाजपा को 72, 241 वोट मिले थे। रालोद के वोट 2, 493 जोड़ दिए जाएं तो सपा यहां कुछ और मजबूत होती है।

बसपा का रोल – बसपा ने यहां भी सपा गठबंधन को नुकसान पहुंचाने वाला जाट बिरादरी का उम्मीदवार उतारा है।

14. असमोली विधानसभा सीट
इस सीट पर 2017 में सपा की जीत हुई थी। सपा को 97, 610 वोट मिले थे, जबकि भाजपा को 76, 484 वोट मिले थे। रालोद के 1, 027 वोट जोड़े जाएं तो सपा गठबंधन को और मजबूती मिलती दिख रही है।

बसपा का रोल – बसपा ने यहां मुस्लिम उम्मीदवार उतारा है। अगर बसपा मजबूती से लड़ी तो मुस्लिम वोट कटेंगे।

15. सम्भल विधानसभा सीट
इस सीट पर 2017 में सपा को कड़ी टक्कर मिली थी। सपा के उम्मीदवार की जीत हुई, 79, 248 वोट मिले। भाजपा को 59, 976 वोट मिले। रालोद के 920 वोट जोड़े जाएं तो गठबंधन का आंकड़ा थोड़ा बढ़ रहा है।

बसपा का रोल – 2017 की तरह ही 2022 के चुनाव में भी बसपा ने मुस्लिम उम्मीदवार उतारा है। पिछली बार की तरह ही वोट भी कटेंगे।

16. मुरादाबाद ग्रामीण विधानसभा सीट
इस सीट पर 2017 में जीत हासिल हुई थी। सपा को 97, 916 वोट मिले थे। भाजपा को 69, 135 वोट मिले थे। यहां रालोद भी मजबूत है, रालोद को 23, 404 वोट मिले थे। दोनों के वोट मिला दें तो इस बार सपा गठबंधन इस सीट पर और मजबूत हो गया है।

बसपा का रोल – रालोद के मजबूत होने की वजह से बसपा ने जाट उम्मीदवार उतार दिया है। परंपरागत मुस्लिम वोटों पर तो सेंधमारी करेगी ही।

17. ठाकुरद्वारा विधानसभा सीट
2017 के चुनाव में सपा को यहां जीत मिली जरूर थी, लेकिन भाजपा कम अंतर से हारी थी। सपा को 1, 07, 865 वोट मिले थे, जबकि भाजपा को 94, 456 वोट मिले थे। वजह साफ थी, बसपा ने मुस्लिम उम्मीदवार दिया था इसलिए भाजपा जीतते-जीतते रह गई।

बसपा का रोल – इस बार बसपा ने फिर से मुस्लिम उम्मीदवार ही उतारा है। इससे भाजपा सीधे मुकाबले में आ रही है।

18. नजीबाबाद विधानसभा सीट
2017 के चुनाव में सपा को जीत मिली थी। भाजपा कम अंतर से हारी थी। सपा को 81, 082 वोट मिले थे तो भाजपा को 79, 080 वोट मिले। रालोद के 3,587 वोट जोड़ दें तो सपा गठबंधन को कुछ मजबूती मिलती दिख रही है।

बसपा का रोल – इस सीट पर भी बसपा ने मुस्लिम उम्मीदवार उतारा है। पिछली बार की तरह भाजपा को सीधे मुकाबले पर लाती दिख रही है।

19. अमरोहा विधानसभा सीट
2017 के चुनाव में इस सीट पर सपा को जीत मिली थी। यहां बसपा के मुस्लिम उम्मीदवार ने मजबूती से चुनाव लड़ा था। इस बार के चुनाव में बसपा ने मुस्लिम उम्मीदवार उतारा है। इसलिए इस सीट पर भी कुछ नहीं कहा जा सकता है।

20. छपरौली विधानसभा सीट
2017 में इस सीट पर रालोद को जीत मिली थी। रालोद 65, 124 वोट मिले थे। भाजपा को 61, 282 वोट मिले थे। भाजपा कम अंतर से हारी थी। सपा के 39, 841 वोट इसमें जोड़ दिए जाएं तो गठबंधन काफी मजबूत हो रहा है।

बसपा का रोल – पिछली बार की तरह ही भाजपा में लड़ाई में आ सकती है। दरअसल, बसपा ने जो उम्मीदवार उतारा है, वह जाट वोटरों के बीच भी प्रभाव रखता है।

21. लोनी विधानसभा सीट
2017 के चुनाव में भाजपा को बंपर जीत मिली थी, लेकिन देखने वाली बात ये है कि बसपा के उम्मीदवार ने सपा के उम्मीदवार को काफी पीछे छोड़ दिया था। मुस्लिम वोटरों में बड़ी सेंधमारी हुई थी। इस सीट पर भाजपा को 1, 13 088 वोट मिले थे, जबकि सपा को 42, 302 और रालोद को 42, 539 वोट मिले थे। दोनों को जोड़ दें तो इस सीट पर मजबूत हो रहा है। जाट और मुस्लिम वोटर गठबंधन ने खींचे तो भाजपा को कड़ी टक्कर मिलेगी।

बसपा का रोल – बसपा ने इस बार भी मुस्लिम उम्मीदवार उतारा है, जो कि जाट वोटर्स के बीच भी प्रभाव रखता है।

22. मांट विधानसभा सीट
इस सीट पर 2017 के चुनाव में त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिला। रालोद को यहां सिर्फ 432 वोटों से हार मिली। रालोद को 64, 430 वोट मिले थे, जबकि बसपा को 65, 862 वोट मिले। सपा के 13, 270 वोट मिलाएं तो गठबंधन मजबूत हो रहा है। यहां भाजपा भी मुकाबले में थी। भाजपा को 59, 871 वोट मिले थे।

बसपा का रोल – पिछली बार की तरह ही इस बार भी बसपा ने ब्राह्मण उम्मीदवार उतारा है। गठबंधन को बसपा से ही नुकसान पहुंचेगा।

23. बल्देव विधानसभा सीट
यह सुरक्षित सीट है। 2017 के चुनाव में रालोद को भाजपा ने हराया। बसपा ने दलित वोट काटे। इससे भाजपा को तो नुकसान नहीं हुआ लेकिन रालोद नुकसान हो गया। भाजपा को 88, 411 वोट मिले। रालोद को 75, 203 वोट मिले। सपा के 8, 893 वोट इसमें जोड़ दिए जाएं तो रालोद मुकाबले करीब हो जाती है। बसपा ने इस बार भी पिछले चुनाव की तरह ही उम्मीदवार रिपीट किया है। गठबंधन को नुकसान हो सकता है।

जाट-मुस्लिम वोटर को लेकर यह भी जानें

पश्चिमी यूपी में 71 विधानसभा सीटों पर 29% अल्पसंख्यक आबादी और 7% जाट हैं। अल्पसंख्यक और जाट दोनों मिलकर क्षेत्र की दो दर्जन से अधिक सीटों के भाग्य का फैसला कर सकते हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुसलमान 32 फ़ीसदी और दलित तकरीबन 18 फ़ीसदी हैं, यहाँ जाट 12 फ़ीसदी और ओबीसी 30 फ़ीसदी हैं।

23 के अलावा बाकी बची सीटों के बारे में समझिए

बागपत सीट

बागपत में रालोद ने यूपी के पूर्व मंत्री कौकब हमीद के बेटे अहमद हमीद को मैदान में उतारा है। अहमद हमीद ने बसपा के टिकट पर बागपत से पिछला चुनाव लड़ा था और 30,000 मतों से हार गए थे। अब इतने बड़े अंतर से हारने के बाद भी उसी अल्पसंख्यक उम्मीदवार को चुनाव लड़ाने से जाट समुदाय में कुछ नाराजगी है।

खतौली सीट

खतौली विधानसभा सीट पर भी समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल के गठबंधन ने किसी मुसलमान उम्मीदवार को खड़ा नहीं किया। बीजेपी ने 2017 में जीत दर्ज करने वाले अपने विधायक विक्रम सैनी को फिर से टिकट दी है, वहीं सपा-रालोद गठबंधन ने राजपाल सिंह सैनी को उम्मीदवार बनाया है। मुज़फ़्फ़रनगर ज़िले में इस सीट पर सबसे कम मुसलमान आबादी है. साल 2012 में इस सीट पर राष्ट्रीय लोकदल ने मुसलमान उम्मीदवार शाहनवाज़ राणा को टिकट दी थी।

चरथावल सीट

चरथावल विधानसभा सीट पर 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के विजय कुमार कश्यप ने सपा के मुकेश चौधरी को क़रीब 23 हज़ार मतों से हराया था। इस बार इस सीट पर बीजेपी ने सपना कश्यप को अपना उम्मीदवार बनाया है। सपा-रालोद गठबंधन से पंकज मलिक चुनाव मैदान में हैं।

इसी तरह मेरठ सहारनपुर मंडल में मेरठ, बिजनौर, हापुड़, कैराना, सहारनपुर सिटी इसके अलावा बिजनौर, गढ़मुक्तेश्वर, छाता, जेवर, बुलंदशहर, थाना भवन में गठबंधन की भाजपा को टक्कर देने की तैयारी है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *