MP में शराब के ‘खेल’ में घिरेगी ‘सरकार’! …. अध्यक्षजी को अकेले ही मोर्चा संभालना पड़ा, ‘सेटिंग’ के लिए फड़फड़ा रहे कुलपति
मध्यप्रदेश में शराब को लेकर ठेकेदार-अफसर आमने-सामने हैं। अप्रैल से शराब दुकानें संचालित करने के लिए लागू पॉलिसी में ऐसे प्रावधान कर दिए गए हैं कि इस व्यवसाय के महारथी भी हाथ डालने से पीछे हट गए। कई शहरों में दुकानों की नीलामी नहीं हो पाई। अब यदि सरकार खुद शराब बेचेगी तो नुकसान तय है। अंदर की खबर यह है कि अफसरों को पता था कि ऐसी नौबत आएगी, लेकिन ‘सरकार’ को बताया गया था कि करीब 1 हजार करोड़ रुपए का राजस्व बढ़ेगा। सरकार के लिए घाटे का सौदा साबित होने पर ठीकरा ठेकेदारों पर फोड़ दिया जाएगा।
अफसर सरकार का नुकसान क्यों चाहते हैं? पता चला है कि शीर्ष पद पर बैठे एक अफसर को छत्तीसगढ़ की पॉलिसी पसंद आ गई है। छत्तीसगढ़ सरकार ने शराब को लेकर कॉर्पोरेशन बनाने का फैसला किया है। जिसमें मुख्य सचिव स्तर के रिटायर्ड अफसर को चेयरमैन और उप सचिव को कमिश्नर बनाया जाएगा। यहां अब आबकारी विभाग नहीं यह कॉर्पोरेशन तय करेगा कि शराब के कौन-कौन से ब्रांड बेचे जाएंगे। साफ है कि बागडोर अफसरों के हाथ में आ जाएगी।
सुना है कि इस साल के अंत में रिटायर होने वाले अफसर ‘सरकार’ के खास हैं। उनकी रणनीति यह है कि एमपी में भी कॉर्पोरेशन बन जाए, ताकि रिटायरमेंट के बाद यहां चेयरमैन बनकर बैठ जाएं। जब शराब से घाटा होगा तभी तो ‘सरकार’ कॉर्पोरेशन बनाएगी। इस कॉर्पोरेशन में अपना भविष्य संवारने के लिए मालवा में पदस्थ एक प्रमोटी आईएएस ने होमवर्क शुरू कर दिया है।
विधानसभा अध्यक्ष को अकेले ही मोर्चा संभालना पड़ा
विधानसभा सचिवालय ने पूर्व विधायकों का सम्मेलन आयोजित किया था। इसके लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, नेता प्रतिपक्ष कमलनाथ और संसदीय कार्य मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा को बतौर अतिथि आमंत्रित किया गया था, लेकिन वे सम्मेलन में शामिल नहीं हुए। ऐसे में विधानसभा अध्यक्ष डॉ. गिरीश गौतम ने अकेले ही मोर्चा संभाला। पूर्व विधायक अपनी कुछ मागों को लंबे समय से सरकार के सामने रखते आ रहे थे। जब ‘सरकार’ ने नहीं सुनी तो विधानसभा अध्यक्ष से सम्मेलन बुलाने का आग्रह किया गया। उन्होंने इसकी सैद्धांतिक सहमति दे दी। उनके सचिवालय ने पत्र भेजकर मुख्यमंत्री कार्यालय और नेता प्रतिपक्ष को सम्मेलन में शामिल होने का अनुरोध किया।
मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष भले ही व्यस्तता की वजह से सम्मेलन में शामिल नहीं हुए, लेकिन संसदीय कार्यमंत्री भी नहीं पहुंचे। सुना है कि पूर्व विधायक इस सम्मेलन में अपनी मांग उठाएंगे, ऐसे में माननीयों ने सम्मेलन से दूरी बनाई। सम्मेलन में हुआ भी वैसा ही। पूर्व विधायकों ने विधानसभा अध्यक्ष के सामने मांगों की लंबी सूची रख दी। हालांकि, अध्यक्ष ने अपने स्तर पर कुछ मांगें पूरी कर दी हैं, लेकिन मुख्य मांगों का क्या होगा?
महिला-बाल विभाग के अफसरों की डिमांड
मंत्रियों की पहली पसंद महिला-बाल विकास विभाग है। वे अपने स्टाफ में यहां के अफसरों को रखना चाहते हैं, लेकिन ‘सरकार’ राजी नहीं है। यहां के अधिकारियों को प्रतिनियुक्ति पर अपने स्टाफ में लाने के लिए 6 मंत्रियों ने दो महीने पहले नोटशीट सामान्य प्रशासन विभाग को भेजी थी, लेकिन अभी तक फैसला नहीं हो पाया है। नोटशीट पहले मुख्य सचिव के कार्यालय में अटका कर रखी गई और अब मुख्यमंत्री कार्यालय में पहुंच गई, लेकिन मुख्यमंत्री तक नहीं पहुंची। सुना है कि मंत्रियों ने जिन अफसरों की डिमांड रखी है, मुख्य सचिव कार्यालय ने उनका काला चिट्ठा भी नोटशीट में लगा कर भेज दिया है। अब देखना है कि मंत्रियों की मांग पूरी होगी या नहीं?
नेताजी जाम में फंसे तो सरकार को घेरा
सीहोर में आयोजित रुद्राक्ष महोत्सव सरकार के गले में हड्डी की तरह अटक गया था। इस आयोजन में लाखों लोगों के आने की संभावना को प्रशासन भांप नहीं पाया। नतीजा यह हुआ कि इंदौर-भोपाल हाईवे पर कई किलोमीटर लंबा जाम लग गया। सरकार पर विपक्ष हमलावर तो था ही, सत्ता पक्ष के नेता भी सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाने लगे। इस मुद्दे पर उबाल तब आ गया, जब बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर सोशल मीडिया पर सार्वजनिक कर दिया। उन्होंने प्रशासन के बहाने सरकार को घेरा, जिसका असर यह हुआ कि भोपाल से बड़े अफसर पंडितजी की शरण में पहुंच गए। आयोजन को जारी रखने के लिए प्रशासनिक व्यवस्थाएं की गईं। सवाल यह उठता है कि सत्ताधारी दल के नेता ने पत्र सार्वजनिक क्यों किया? सुना है कि विजयवर्गीय इंदौर से विदिशा जा रहे थे। उनका वाहन आष्टा के पास जाम में फंसा रहा। प्रशासन की लाख कोशिश के बाद उनका वाहन 3 घंटे बाद निकल पाया था। नेताजी का गुस्सा लाजिमी था।
…और अंत में
‘पटेल’ से सेटिंग करने फड़फड़ा रहे कुलपति
एक विश्वविद्यालय के कुलपति बहुत परेशान हैं। सरकार ने विश्वविद्यालय के बहीखोते की जांच करवा दी है। उन्हें डर है कि सरकार उन्हें हटा ना दे। उन्हें ऐसे व्यक्ति की तलाश है, जो राजभवन के अलावा सरकार में अपनी पैठ रखता हो। ताकि सरकार क्या एक्शन ले रही है, पता चल सके और यदि ऐसा है तो कुछ महीने मोहलत मिल सके। सुना है कि उन्हें किसी ‘पटेल’ का नाम पता चला है, लेकिन उस तक पहुंचाने वाले की तलाश है।