आपराधिक मुकदमों में फंसाना और उसके बाद राजीनामा करने के बहाने एक मोटी रकम वसूलना वर्तमान में आम चलन हो गया है। ऐसी परिस्थितियों में उचित कानूनी जानकारी के अभाव में लोगों को न सिर्फ शारीरिक और आर्थिक परेशानी उठानी पड़ती है, बल्कि मानसिक प्रताड़ना से भी गुजरना पड़ता है। दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) कानूनी प्रविधानों के माध्यम से ऐसी व्यवस्था दी गई है, जिनका प्रयोग करते हुए एक आम आदमी अदालतों में लंबी ट्रायल में भाग लिए बिना ही खुद को आपराधिक मुकदमों से निजात दिला सकता है। जब कभी पुलिस किसी के प्रभाव में आकर झूठी एफआइआर दर्ज कर ले और प्रताड़ित करे, तब धारा 482 दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत सीधे तौर पर उस एफआइआर या संपूर्ण आपराधिक प्रकरण की कार्रवाई को हाई कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। धारा 482 के तहत याचिका प्रस्तुत करके आपराधिक प्रकरण को निरस्त कराना सामान्य तौर पर सबसे अधिक प्रयोग में लाया जाने वाला कानूनी कदम है।

उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय धारा 397 दंड प्रक्रिया संहिता के अनुसार किसी भी आपराधिक कार्रवाई की पुनरीक्षण करते हुए दूसरे शब्दों में कहा जाए तो उस आपराधिक मामले का रिवीजन करने के उपरांत विचरण की लंबी एवं जटिल प्रक्रिया से गुजरे बगैर ही शुरुआती स्टेज पर आरोपित को मुक्त किया जा सकता है। इस प्रकार आपराधिक मामलों की लंबी, जटिल और उतार-चढ़ाव वाली खर्चीली प्रक्रिया से गुजरे बिना ही कोई भी व्यक्ति जिसके पास पर्याप्त आधार और तथ्य मौजूद है स्वयं को निर्दोष साबित करने, तब ऐसा व्यक्ति धारा 169, 232, 257, 397 और 482 दंड प्रक्रिया संहिता ( सीआरपीसी) को प्रयोग में लाकर खुद को आपराधिक कार्रवाई या झूठे मुकदमे से बचा सकता है।