जिस केस में 3 पुलिसकर्मी शहीद, उसकी सुनवाई धीमी ?

जिस केस में 3 पुलिसकर्मी शहीद, उसकी सुनवाई धीमी …
गुना में 18 महीने में 7 गवाहों के बयान हुए; इस तरह तो 23 साल लगेंगे

ऐसा केस, जिसमें सब इंस्पेक्टर समेत 3 पुलिसकर्मी शहीद हुए, उसकी सुनवाई की प्रक्रिया बहुत धीमी चल रही है। 18 महीनों में 141 में से सिर्फ 7 लोगों की गवाही हो पाई। इस तरह, औसतन एक गवाह के बयान में करीब दो महीने से ज्यादा समय लगा। अधिकतर गवाह पुलिसकर्मी ही हैं।  ……ने इस केस को खंगाला और सुनवाई की प्रक्रिया को देखा, तो पता चला कि अगर इसी रफ्तार से सुनवाई चलती रही, तो 141 गवाहों के बयान होने में 23 साल लगेंगे।

मामला गुना पुलिस-शिकारी मुठभेड़ का है। प्रकरण गुना के एससी-एसटी कोर्ट में विचाराधीन है। अभी तक 30 पेशियां हो चुकी हैं। इसमें एक से 7 नंबर तक के गवाहों के बयान हुए हैं। इसके लिए हर गवाह को दो से तीन बार समन दिए गए हैं। अगली सुनवाई 16 मई को है।

आगे बढ़ने से पहले फ्लैशबैक में चलते हैं

13-14 मई 2022 की दरमियानी रात करीब 3 बजे आरोन के जंगल में काले हिरण का शिकार कर लौट रहे शिकारियों से पुलिस की मुठभेड़ हुई थी। पुलिस और शिकारियों की इस आमने-सामने की भिड़ंत में आरोन पुलिस थाना के 3 जवान शहीद हुए थे। शिकारियों ने एसआई राजकुमार जाटव, आरक्षक नीरज भार्गव और संतराम की हत्या कर दी थी।

पुलिस-शिकारियों की मुठभेड़ में एसआई समेत तीनों पुलिसकर्मियों शहीद हाे गए थे।

कितने आरोपी, किसका क्या हुआ

मामले में पुलिस ने कुल 10 आरोपी बनाए। इनमें से 3 को एनकाउंटर में मार गिराया। बाकी 7 आरोपी जेल में हैं। कुल 10 आरोपियों में मास्टरमाइंड शहजाद खान, नौशाद खान, निसार खान, मोहम्मद जिया खान, सिराज खान, गुल्लू खान उर्फ गोलू, छोटू खान, सोनू उर्फ शफाक खान, इरशाद खान और विक्की उर्फ दिलशाद खान हैं।

एनकाउंटर में ये मारे गए – मास्टरमाइंड शहजाद खान, छोटू खान और नौशाद खान।

… तो 23 साल लगेंगे बयान होने में

वारदात के 87 दिन बाद 10 अगस्त 2022 कोर्ट में 484 पेज का चालान पेश किया गया। 27 अगस्त 2022 से SC-ST मामलों के विशेष न्यायाधीश की कोर्ट में ट्रायल शुरू हुआ। 7 नवंबर को आरोपियों पर आरोप तय किए गए। 2 दिसंबर 2022 से गवाहों के बयान शुरू हुए। तब से अब तक 18 महीनों में केवल सात गवाहों के बयान हो पाए हैं। इनमें छह पुलिसकर्मी और एक मुखबिर शामिल हैं। एक गवाह के बयान के लिए औसतन चार पेशियां हुईं। एक पेशी करीब 15 दिन में लग रही है। इस तरह एक गवाह के बयान में करीब दो महीने लग गए। इस हिसाब से देखा जाए, तो 141 गवाहों के बयान में करीब 23 साल लग जाएंगे।

14 मई 2022 को शिकारियों में काले हिरणों का शिकार किया था। आरोपी घर पर शादी समारोह में दावत के लिए इन्हें ले जा रहे थे। इसकी खबर पुलिस को लग गई।

गवाहों में सबसे ज्यादा पुलिसकर्मी

इस मामले में कुल 141 गवाह हैं। इनमें सबसे ज्यादा पुलिसकर्मी हैं। 49 पुलिसकर्मी गवाह, 13 डॉक्टर, 40 लोग स्वतंत्र साक्षी (हथियार, वाहन, हिरणों के अंग आदि जब्ती के समय मौजूद लोग), 10 लोग वन विभाग कर्मचारी और अधिकारी, तीन लोग आरोपियों के परिवार वाले, एसटीआर के एक अधिकारी, 1 नौरादेही अभयारण्य के अफसर, दो लोग टेलीकॉम कंपनी के अधिकारी, तीन लोग आरटीओ, स्कूल प्रिंसिपल, एसडीएम ऑफिस के अधिकारी शामिल हैं।

इसलिए लग रहा समय

कोर्ट के प्रोसिजर के अनुसार गवाह को बुलाने के लिए नोटिस दिया जाता है। पहले समन भेजा जाता है। इस पर गवाह नहीं आए, तो फिर वारंट भेजा जाता है। इसके बाद भी गवाह नहीं आया, तो जमानती वारंट जारी होता है। उसके बाद गिरफ्तारी वारंट जारी किया है। फिर भी अगर गवाह नहीं आए, तो स्थायी वारंट भेजा जाता है। इस केस में गवाह को कम से कम दो बार वारंट भेजना पड़ रहा है, तब गवाह कोर्ट में बयान देने पहुंच रहे हैं। बमुश्किल गवाह कोर्ट पहुंच रहे हैं। इस वजह से भी देरी हो रही है।

हालांकि, ट्रायल की रफ्तार काफी धीमी है। ….ने क्रिमिनल मामलों के जानकार से बात की। उनसे जाना कि धीमे ट्रायल से केस पर क्या असर पड़ेगा। क्या परिस्थितियां बन सकती हैं। आखिर क्यों ट्रायल धीमा चल रहा है।

सवाल: पुलिस-शिकारी मुठभेड़ केस की ट्रायल धीमी है?

जवाब: इस मामले में जिस तरह से 3 पुलिसकर्मियों की शहादत हुई, उसमें जो भी निष्कर्ष निकलेगा, वो कोर्ट निकालेगा, परंतु ट्रायल को जल्द पूरा करना चाहिए। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि “जस्टिस हरीड इज जस्टिस वरीड, जस्टिस डिलेड इज जस्टिस डिनाइड।” तो ये बहुत लंबा समय हो गया है। किसी भी सेशन ट्रायल में इतना समय नहीं लगना चाहिए।

सवाल: क्या इसमें अभियोजन को तेजी से काम करना चाहिए?

जवाब: इस मामले में अभियोजन की गलती है। अभियोजन को साक्षियों को तलब करना, जो साक्षी हैं, उन्हें तलब करना है। ऐसे मामलों में प्रक्रिया दो, तीन दिन में भी लगती है, इसलिए जल्दी-जल्दी तारीख लेनी चाहिए। एक दिन में तीन-तीन, चार-चार गवाहों के बयान कराने चाहिए। क्योंकि, अधिकतर गवाह ऐसे होते हैं, जो फॉर्मल गवाह होते हैं, जिनकी गवाही 10 से 15 मिनट में हो जाती है।

कुछ ऐसे विटनेस होते हैं, जिनकी गवाही और क्रॉस में ज्यादा समय लगता है। जैसे, इस केस में एक गवाह से तीन, चार दिन तक क्रॉस एग्जामिनेशन चलता रहा। उसके बाद इसकी रफ्तार सुस्त हो गई। ये उन कैदियों के लिए भी ठीक नहीं है, जिन पर आरोप लगे हैं। वो भी जेल में पड़े हैं। जल्दी ट्रायल होने से उनका भी निष्कर्ष निकलेगा कि अपराध की क्या वास्तविकता है।

सवाल: इस प्रकरण के जांच अधिकारी को गवाहों की सूची में आखिरी में रखा गया है। ऐसा क्यों?

जवाब: पुलिस जब चालान पेश करती है, तो उसमें गवाहों का अंतिम प्रतिवेदन रहता है, जिसमें घटना का संक्षिप्त विवरण रहता है, विटनेस की लिस्ट रहती है। जो शासकीय अधिवक्ता होता है, वो ट्रायल प्रोग्राम बनाता है कि कौन से ऐसे इंपोर्टेंट विटनेस हैं, जिनकी पहले गवाही होनी चाहिए।

ये सामान्य प्रक्रिया है कि जांचकर्ता अधिकारी के बयान सबसे आखिरी में ही कराए जाते हैं। क्योंकि, बाकी गवाहों के बयानों में अगर कुछ विरोधाभास होता है या पुलिस की इन्वेस्टिगेशन में कुछ कमियां होती हैं, जो कई बार स्वाभाविक रूप से होती हैं। कई बार अज्ञानतावश हो जाती हैं, तो वो कमियां कोर्ट में क्रॉस एग्जामिनेशन में सामने आती हैं।

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