भिंड .. एक हजार साल से प्रज्ज्वलित ‘जीत की ज्योति’ ….

पृथ्वीराज चौहान ने की थी वनखंडेश्वर महादेव की खोज, युद्ध जीतने की कामना के साथ जलाई थी अखंड ज्योत …

मध्यप्रदेश के भिंड शहर में भगवान महादेव का एक ऐसा मंदिर है, जिसमें अखंड ज्योति एक हजार साल से जल रही है। यह स्वयंभू वनखंडेश्वर महादेव मंदिर की खोज दिल्ली नरेश पृथ्वीराज चौहान ने की थी। यहां पर पूजा अर्चना करते हुए दुश्मनों से जीत पाने की मन्नत मांगी थी। मनोकामना पूरी होने पर उन्होंने अखंड ज्योति जलाई थी, जो कि निरंतर जल रही है। आज भी मंदिर पर लोग मन्नत मांगते हैं। अर्जी लगाते हैं। पूरी होने पर अखंड ज्योति को घी से भरते हैं। यह परंपरा अब भी भिंड शहर में बनी हुई है।

दिल्ली के नरेश पृथ्वीराज चौहान (1148- 1192 सदी) की महोबा राज्य से दुश्मनी थी। वे युद्ध के लिए दिल्ली से महोबा राज्य के सामांत मलखान के राज्य सिरसा गढ़ (जो कि दबोह, भिंड कस्बे के नजदीक यूपी सीमा के बीहड़ में है।) पर चढ़ाई करने के लिए निकले थे। उन दिनों भिंड शहर पूरी तरह से जंगल था। इतिहासकारों के मुताबिक पृथ्वीराज चौहान भगवान शिव के अनंत भक्त थे। वे जहां रात्रि विश्राम करते थे, उस जगह पर प्रात:काल शिवलिंग स्थापित कर पंडितों के साथ वेद मंत्रों के साथ पूजा-अर्चना करते थे। इसके बाद आगे लड़ाई के लिए कूच करते थे।

दिल्ली से चलकर पृथ्वीराज चौहान की सेना भिंड पहुंची (श्रृंगी ऋषि के पुत्र भिंडी ऋषि की तपोवन में आए)। यहां जंगल में रात्रि विश्राम किया। ऐसा कहा जाता है कि रात्रि में भगवान शिव ने स्वप्न में दर्शन दिए और कहा कि यहां शिवलिंग स्थापित करने की जगह मुझे जमीन के अंदर से बाहर निकलकर पूजा अर्चना करें। पृथ्वीराज चौहान ने शिवलिंग की खोज की। उन्होंने ऊपर से मिट्‌टी हटाकर पूजा-अर्चना की और सिरसा गढ़ के नरेश मलखान को युद्ध में परास्त करने की मन्नत मांगी। साथ ही संकल्प लिया कि जब तक मेरा राज्य रहेगा मैं अखंड ज्योति जलाऊंगा।

मंदिर के समीप बनवाया था गौरी सरोवर

जब पृथ्वीराज चौहान युद्ध जीत गए तो वापस लौटकर उन्होंने मंदिर के पास गौरी सरोवर तालाब की स्थापना की। इस तरह से दिल्ली से लेकर सिरसा गढ़ यानी झांसी की सीमा तक पृथ्वीराज चौहान का राज्य हो गया था। मंदिर के बारे में जानकारी रखने वाले श्रद्धालु अनुराग मिश्रा का कहना है कि गौरी सरोवर की खुदाई के बाद जो मिट्‌टी निकली थी, उस पर पृथ्वीराज चौहान ने चौकी बनवाई थी।

कालांतर में भदावर राजा का राज्य आया। फिर सिंधिया राजवंश का राज्य आया, लेकिन हर शासक ने पृथ्वीराज्य चौहान की अखंड ज्योति को निरतंर जलाया। भदावर राजाओं के शासन काल में पृथ्वीराज चौहान द्वारा स्थापित की गई चौकी को किला के रूप में परिवर्तित कर दिया गया था। धीरे-धीरे यह जंगल समाप्त हो गया, इस तरह से भिंड नगर का उदय हुआ था। वनखंडेश्वर महादेव जंगल कटने और आवास बनने की वजह से बीच बस्ती में आ गए। आज भी भिंड शहर की पुरानी बस्ती के रहने वाला हर परिवार खुशी के मौके पर भगवान वनखंडेश्वर महादेव की पूजा अर्चना करके घी के दीपक भरते हैं।

एक साथ जलते हैं दो दीपक

मंदिर के पुजारी वीरेंद्र शर्मा का कहना है कि पृथ्वीराज चौहान द्वारा शिवलिंग की खोज 11वीं सदी में की गई थी। बुंदेलखंड विजय यात्रा के दौरान ही उन्होंने भगवान वनखंडेश्वर महादेव के समक्ष दीपक जलाया था। तब से यह अखंड ज्योति निरंतर जलती आ रही है। उनका कहना है कि इस शिवलिंग के पास दो दीपक है जो एक हजार साल से निरंतर जल रहे हैं। ऐसा मेरे पूर्वज बताते हैं। यह बात सर्वविदित है कि यहां जो सच्चे मन से प्रार्थना करके मनोकामना करता है, वह पूरी होती है। इसके बाद लोग दीपक को घी से भरने की परंपरा बनी हुई है।

लॉकडाउन में भी घी की नहीं आई कमी

मंदिर के पुजारी का कहना है कि कोविड काल में पूरा शहर बंद था। मंदिर में पूजा-अर्चना के लिए लोगों की आवाजाही प्रतिबंधित थी। उन दिनों में मैं सुबह शाम पूजा के लिए आता था। ऐसे समय में भी भगवान भोले नाथ की कृपा ऐसी रही कि घी की कमी नहीं आई। दीपक निरंतर जलता रहा। हालांकि, विशेष परिस्थितियों में मंदिर प्रबंधन दीपक के लिए घी का इंतजाम करके रखता है।

स्वयंभू हैं वनखंडेश्वर महादेव

पुरातत्व विभाग के जिला अधिकारी वीरेंद्र पांडेय का कहना है कि यह शिवलिंग, स्वयंभू है। करीब एक हजार साल से अधिक पुराना है। इस शिवलिंग की खोज लोक कथाओं में पृथ्वीराज चौहान द्वारा बताई जाती है। तब से दीपक जल रहे हैं।

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