वृक्षों की कटाई और रेत खनन से टूट रही नदियों की धार

चंबल नदी में कम होता पानी …….

भिण्ड. जिले भर की आधा दर्जन से ज्यादा नदियों में से प्रमुख पांच नदियों के अस्तित्व पर खतरा उत्पन्न हो गया है। आलम ये है कि जो नदियां हर मौसम में पानी से लबालब रहती थीं उनकी न सिर्फ धार टूट रही है बल्कि कई पूरी तरह से जलविहीन हो गई हैं। इसके पीछे लगातार हो रही वृक्षों की कटाई और रेत खनन है जिस पर प्रशासनिक स्तर पर प्रभावी ढंग से अंकुश नहीं लग पा रहा है।

उल्लेखनीय है अथाह पानी के साथ हर मौसम में बहते रहने वाली 965 किलो मीटर लंबी और करीब 600 मीटर चौड़ी चंबल नदी की सांसे भी रेत खनन के चलते उखड़ने लगी हैं। मगरमच्छ, घड़ियाल, विभिन्न प्रजाति के कछुओं तथा डॉल्फिन के अलावा अन्य जलीय जीवों के लिए संरक्षित नदी का रेत भी जलीय जीवों के लिए प्रजनन स्थल है। बावजूद इसके रेत खनन पर अंकुश नहीं लग पा रहा। लिहाजा गर्मी के दिनों में चंबल की धार कुछ वर्षों से टूटने लगी है।

अतिक्रमण के चलते गुम हो रही झिलमिल

झिलमिल नदी गुम होने के कगार पर है। अतिक्रमण के चलते चौड़ाई सिंकुड़ती जा रही है। नदी ने नाले जैसा स्वरूप ले लिया है। जमीन आंशिक हिस्से में ही गीली नजर आ रही है। हालात ऐसे हैं कि एक बाल्टी पानी उपलब्ध नहीं हो पाएगा। विदित हो कि उक्त नदी आसपास के गांवों का न सिर्फ जलस्तर बढ़ाने में बल्कि पशुओं के लिए नहाने एवं पीने के लिए पानी मुहैया कराती आ रही थी जो अब निर्जल है।

रेत के दिन रात खनन से दम तोड़ रही सिंध

470 किमी लंबी सिंध नदी में दो दशक से हो रहे रेत खनन के चलते 30 से 35 फीट गहरे गड्ढे हो गए हैं। इससे पर्यावरणीय स्वरूप बिगड़ने के अलावा धार भी टूट रही है। नदी को पनडुब्बियों एवं जेसीबी के जरिए दिन रात खोखला किया जा रहा है। वाहनों के लिए पहुंच मार्ग बनाने में नदी किनारे के हजारों वृक्ष काट दिए गए। फलस्वरूप अंचल के के लिए जीवनदायिनी सिंध अब खुद को बचाने की गुहार लगा रही है।

यह नाला या नहर नहीं बल्कि झिलमिल नदी है जिसमें नाली की भांति चल रहा पानी
यह बेसली नदी जिसमें कभी तेज धार के साथ पानी का बहाव रहता था आज निर्जल अवस्था में है।

खतरे में सिंध, झिलमिल, क्वारी, बेसली और चंबल नदी का अस्तित्व

अतिक्रमण और किनारे के वृक्षों पर प्रहार खत्म कर रहा वजूद

265 किलोमीटर लंबी एवं 180 मीटर चौड़ी क्वारी नदी श्योपुर एवं मुरैना के अलावा भिण्ड से गुजरते हुए गंगा नदी में मिली है। यह नदी दो दशक पूर्व तक किसानों की फसलों के लिए वरदान बनी हुई थी। लगातार किए जा रहे नदी की जमीन पर अतिक्रमण तथा नदी के तीर पर खड़े वृक्षों की सतत रूप से हो रही कटाई इसके लिए अभिषाप बन गई है। आलम ये है कि वर्तमान में न केवल नदी की चौड़ाई सिमटकर 85 से 90 मीटर रह गई है बल्कि उसमें बहने वाले पानी की धार भी लगभग खत्म होने के कगार पर है।

 

 

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