‘देश की छवि बिगाड़ने की कोशिश’, वैश्विक भुखमरी रिपोर्ट पर भारत सरकार का जवाब

भारत सरकार की ओर से कहा गया कि ये रिपोर्ट न केवल जमीनी हकीकत से अलग है, बल्कि विशेष रूप से कोविड महामारी के दौरान सरकार के किए गए कामों को जानबूझकर नजरअंदाज करती है.
आयरलैंड और जर्मनी के गैर-सरकारी संगठनों, कंसर्न वर्ल्डवाइड और वेल्ट हंगर हिल्फ ने ग्लोबल हंगर रिपोर्ट-2022 जारी की है जिसमें भारत को 121 देशों में 107वें स्थान पर रखा है. ये सूचकांक भुखमरी का एक गलत मापदंड है और गंभीर कार्यप्रणाली मुद्दों से ग्रस्त है. सूचकांक की गणना के लिए उपयोग किए जाने वाले चार संकेतकों में से तीन बच्चों के स्वास्थ्य से संबंधित हैं और पूरी आबादी के बारे में नहीं बताते हैं.

केवल 3 हजारों लोगों पर किया सर्वे

भारत सरकार ने कहा कि चौथा और सबसे महत्वपूर्ण संकेतक, कुपोषित आबादी के अनुपात (पीओयू) का अनुमान 3000 के बहुत छोटे सैंपल पर किए गए एक जनमत सर्वेक्षण पर आधारित है. ये रिपोर्ट न केवल जमीनी हकीकत से अलग है, बल्कि विशेष रूप से कोविड महामारी के दौरान आबादी के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सरकार के किए गए प्रयासों को जानबूझकर नजरअंदाज करती है. एफएओ का अनुमान गैलप वर्ल्ड पोल के माध्यम से आयोजित “खाद्य असुरक्षा अनुभव स्केल (एफआईईएस)” सर्वेक्षण मॉड्यूल पर आधारित है, जो 3000 उत्तरदाताओं के नमूने के आकार के साथ 8 प्रश्नों पर आधारित एक जनमत सर्वेक्षण है.

सरकार ने कहा कि एफआईईएस के माध्यम से लिए गए एक छोटे से सैंपल से एकत्र किए गए डेटा का उपयोग भारत के लिए कुपोषित आबादी के अनुपात (PoU) की गणना करने के लिए किया गया है जो न केवल गलत है बल्कि अनैतिक भी है. ग्लोबल हंगर रिपोर्ट जारी करने वाली कंसर्न वर्ल्डवाइड और वेल्ट हंगर हिल्फ़ की प्रकाशन एजेंसियों ने स्पष्ट रूप से रिपोर्ट जारी करने से पहले अपना काम ठीक से नहीं किया है.

रिपोर्ट का प्रकाशन बेहद खेदजनक

भारत सरकार की ओर से आगे कहा गया कि जुलाई 2022 में एफआईईएस सर्वेक्षण मॉड्यूल डेटा के आधार पर ऐसे अनुमानों का उपयोग नहीं करने के लिए एफएओ के साथ मामला उठाया गया था क्योंकि इसका सांख्यिकीय आउटपुट योग्यता पर आधारित नहीं होगा. हालांकि इस बात का आश्वासन दिया जा रहा था कि इस मुद्दे पर आगे और काम होगा. इस तरह के विचारों के बावजूद ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट का प्रकाशन बेहद खेदजनक है.

जानकारी के सही प्रश्न नहीं पूछे गए

इस सर्वे में पूछे गए कुछ प्रश्न इस प्रकार हैं- “पिछले 12 महीनों के दौरान, क्या कोई समय था, जब पैसे या अन्य संसाधनों की कमी के कारण, आप चिंतित थे कि आपके पास खाने के लिए पर्याप्त भोजन नहीं होगा? आपने जितना सोचा था उससे कम खाया?” ये स्पष्ट है कि इस तरह के प्रश्न सरकार द्वारा पोषण संबंधी सहायता प्रदान करने और खाद्य सुरक्षा के आश्वासन के बारे में सही जानकारी की खोज नहीं करते हैं. भारत में प्रति व्यक्ति आहार ऊर्जा आपूर्ति, जैसा कि फूड बेलेंस शीट से एफएओ द्वारा अनुमान लगाया गया है, साल-दर-साल बढ़ रही है और इसका कोई कारण नहीं है कि देश में कुपोषण का स्तर बढ़ना चाहिए. इस अवधि के दौरान सरकार ने खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कई उपाय किए थे. भारत सरकार दुनिया में सबसे बड़ा खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम चला रही है.

सरकार ने 80 करोड़ लोगों को दिया मुफ्त राशन

देश में कोविड-19 के प्रकोप के कारण उत्पन्न आर्थिक व्यवधानों के मद्देनजर, सरकार ने मार्च 2020 में लगभग 80 करोड़ राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) लाभार्थियों को अतिरिक्त मुफ्त खाद्यान्न (चावल / गेहूं) के वितरण की घोषणा की थी. पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएम-जीकेएवाई) के तहत प्रति माह 5 किलोग्राम प्रति व्यक्ति दिया गया है. सरकार ने कहा कि अब तक, पीएम-जीकेएवाई योजना के तहत सरकार ने राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को लगभग 1121 लाख मीट्रिक टन खाद्यान्न आवंटित किया है. इस योजना को दिसंबर 2022 तक बढ़ा दिया गया है. वितरण राज्य सरकारों के माध्यम से किया गया है, जिन्होंने स्वयं लाभार्थियों को दालें, खाद्य तेल और मसाले आदि उपलब्ध कराकर केंद्र सरकार के प्रयासों को आगे बढ़ाया है.

प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना के तहत दिए 5 हजार रुपये

भारत में 14 लाख आंगनबाड़ियों में आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं द्वारा पूरक पोषाहार का वितरण किया गया. लाभार्थियों को टेक होम राशन हर दिन उनके घरों पर पहुंचाया गया. प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना के तहत 1.5 करोड़ से अधिक पंजीकृत महिलाओं को उनके पहले बच्चे के जन्म पर गर्भावस्था और प्रसव के बाद की अवधि के दौरान मजदूरी समर्थन और पौष्टिक भोजन के लिए 5000 रुपये प्रदान किए गए.

सरकार ने कहा कि ग्लोबल हंगर इंडेक्स (Global Hunger Index) में शामिल पीओयू के अलावा तीन अन्य संकेतक मुख्य रूप से बच्चों से संबंधित हैं. स्टंटिंग, वेस्टिंग और 5 साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर, ये संकेतक भूख के अलावा पीने के पानी, स्वच्छता, पर्यावरण जैसे विभिन्न अन्य कारकों के परिणाम हैं. मुख्य रूप से बच्चों के स्वास्थ्य से संबंधित संकेतकों के आधार पर भुखमरी की गणना करना न तो वैज्ञानिक है और न ही तर्कसंगत है.

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