चीतों के गले से उतरेगा मौत का पट्टा …?
चिता के बाद चेते; चीतों के गले से उतरेगा मौत का पट्टा …
साउथ अफ्रीका से एक और विशेषज्ञ आए तीनों चीतों को किया जा रहा ट्रेंक्युलाइज …
भोपाल. प्रदेश का मानसून चीतों को रास नहीं आ रहा। ऐसे में रेडियो कॉलर से हुआ इंफेक्शन इनकी जान का दुश्मन बन गया है। तेजस और सूरज की मौत के बाद सवाल उठा था कि रेडियो कॉलर से इनकी त्वचा में इंफेक्शन हो रहा है। इसके बाद खुले जंगल में घूम रहे अन्य चीतों की जांच की गई तो तीन चीते शौर्य, पवन और गौरव में भी संक्रमण की बात सामने आई। पवन को ज्यादा संक्रमण होने पर ट्रैंक्युलाइज कर बाड़े में शिफ्ट किया गया। स्टीयरिंग कमेटी ने यह भी तय किया है कि सभी चीतों की रेडियो कॉलर हटा ली जाए। इसके लिए सभी को वापस बाड़े में शिफ्ट करना पड़ेगा। अब मानसून तक सभी चीतों को बाड़े में ही रखा जाएगा।
चीते की त्वचा पतली
परियोजना से जुड़े रहे एक विशेषज्ञ ने बताया कि चीतों को भारत लाते समय इस बात पर गौर नहीं किया गया कि साउथ अफ्रीका और नामीबिया में भारत से कम बारिश होती है। चीते यहां के मौसम में खुद को ढाल नहीं पा रहे हैं। उन्हें अनुकूल होने में दो से तीन पीढ़ी लगेगी। यहां बाघ, तेंदुआ और अन्य वन्य प्राणियों की चमड़ी मोटी होती है, इसलिए उन्हें कॉलर आइडी के बाद भी इंफेक्शन नहीं होता। लेकिन चीतों की त्वचा पतली होती है।
संक्रमण से मौत की बात
चीता स्टीयरिंग कमेटी के अध्यक्ष राजेश गोपाल ने तीन दिन पहले कहा था कि सूरज की मौत कॉलर आइडी से त्वचा में संक्रमण के बाद हुई। एनटीसीए ने इसका खंडन करते हुए कहा था कि ऐसा नहीं हो सकता।