चंद्रयान पर भी तू-तू, मैं-मैं से बाज नहीं आए राजनेता !
चंद्रयान पर भी तू-तू, मैं-मैं से बाज नहीं आए राजनेता ….
यह हमारे लिए बहुत गौरव की बात है कि चंद्रयान-3 ने चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग करने में सफलता पाई है। इससे पहले दुनिया का कोई देश यह नहीं कर पाया था। लेकिन साथ ही यह बहुत खेद की बात भी है कि जहां एक तरफ हम इतनी ऊंचाई पर पहुंचे, वहीं हमारा राजनीतिक-विमर्श और नीचे गिर गया!
लगता है ऐसा कोई भी विषय नहीं है जिस पर हमारे राजनेता अपने मतभेदों को एक तरफ रखकर एक राष्ट्रीय उपलब्धि की सर्वसम्मति से सराहना कर सकते हों। इसके बजाय आज तो संकीर्णता, श्रेय लेने की होड़, दोषारोपण और एक-दूसरे पर विषवमन करने की दु:खद प्रवृत्ति के ही दर्शन सर्वत्र हो रहे हैं।
चंद्रयान-3 की सफलता के बाद यह सब और तीक्ष्ण रूप से दिखलाई दिया। कांग्रेस ने भाजपा पर आरोप लगाया कि वह श्रेय लेने की होड़ कर रही है और इस वृहत् उपलब्धि के पीछे के दशकों के सामूहिक-प्रयासों की अनदेखी कर रही है। भाजपा ने कांग्रेस को आड़े हाथों लिया कि वह यह कहते हुए इस ऐतिहासिक क्षण की अवमानना कर रही है कि इस उपलब्धि का श्रेय नरेंद्र मोदी के बजाय जवाहरलाल नेहरू को जाता है, जिन्होंने 1962 में ही भारत के अंतरिक्ष-कार्यक्रम की स्थापना करने की दूरदृष्टि दिखा दी थी। इस तू-तू-मैं-मैं में वास्तविक नायकों यानी इसरो के दृढ़-प्रतिज्ञ, मेधावी और इनोवेटिव वैज्ञानिकों को भुला दिया गया।
क्या हमारे राजनेता कभी उदारता, बड़प्पन और सही मायनों में राष्ट्रभक्ति का परिचय नहीं दे सकते कि राष्ट्रीय उपलब्धि के अवसर पर तो एक हो जाएं? चंद्रयान-3 की सफलता पूरे देश के लिए गर्व का विषय थी, इसका किसी पार्टी से सम्बंध नहीं था। भाजपा चाहती तो इस अवसर पर पिछली सरकारों और उनके नेताओं के योगदान को स्वीकार कर सकती थी, जिन्होंने इसरो को आज इस मुकाम तक पहुंचाया है। वहीं कांग्रेस भी इस अवसर पर मोदी सरकार को इस अभूतपूर्व उपलब्धि पर शुभकामनाएं प्रेषित कर सकती थी और इसरो के वैज्ञानिकों का अभिनंदन कर सकती थी।
इसके बजाय दोनों पार्टियों के प्रवक्ताओं ने इस ऐतिहासिक क्षण को भी अविवेकपूर्ण प्रतिक्रियाओं से मलिन कर दिया। कांग्रेस और टीएमसी ने भाजपा पर इस घटना के राजनीतिकरण का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने लैंडिंग के तुरंत बाद टीवी पर लम्बा भाषण देकर लाइमलाइट में आने की कोशिश की।
उन्होंने अपने भाषण में विगत सरकारों- विशेषकर पं. नेहरू के योगदान को नहीं स्वीकारा। इसके जवाब में भाजपा ने कहा कि यह प्रधानमंत्री की इस परियोजना के लिए प्रतिबद्धता ही थी, जिसने उसे सफलता दिलाई। भाजपा प्रवक्ताओं ने याद दिलाया कि 2019 में चंद्रयान-2 की विफलता के बाद किस तरह से प्रधानमंत्री ने इसरो प्रमुख के. सिवान को दिलासा दिया था।
इस बार जब वे विदेश यात्रा से लौटे तो सीधे इसरो चेयरमैन के. सोमनाथ और उनके साथियों से मिलने जा पहुंचे। लेकिन हर मामले में एक मध्य-मार्ग होता है। अफसोस कि न तो भाजपा और न ही कांग्रेस की रुचि उसमें रहती है। इसमें भला क्या संदेह है कि वर्तमान सरकार को इस उपलब्धि के श्रेय से वंचित नहीं किया जा सकता, लेकिन हमें यह भी याद रखना चाहिए कि भारत में स्पेस-रिसर्च 2014 में शुरू नहीं हुई थी।
विक्रम लैंडर के लैंडिंग स्थल का नामकरण ‘शिव शक्ति’ रखने पर भी विवाद छिड़ गया। खुद ‘विक्रम’ लैंडर का नामकरण इसरो के पहले प्रमुख विक्रम साराभाई के नाम पर किया गया है। एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने इसे हास्यास्पद बताते हुए कहा कि चांद पर मोदी की मिल्कियत नहीं है, जो वो उसके विशिष्ट स्थलों का नाम रखेंगे। वास्तव में, यह तर्क अपने आप में हास्यास्पद था, क्योंकि दूसरे देशों ने भी ऐसा किया है। खुद कांग्रेस ने 2008 में मून इम्पैक्ट प्रोब को ‘जवाहर पॉइंट’ नाम दिया था!
सेकुलरिज्म का मसला भी छेड़ा गया। ‘शिव शक्ति’ को अनसेकुलर कहा गया। लेकिन एक ऐसे देश में, जहां बहुसंख्य आबादी हिंदुओं की हो, वहां हिंदुओं के प्रमुख आराध्य के नाम पर किसी स्थान का नामकरण करने से देश में धार्मिक वैमनस्य का खतरा नहीं उत्पन्न हो जाता है।
वास्तव में शिव को परम-चैतन्य माना गया है और तुलसीदास ने उन्हें ‘अखंडम्, अजन्मम्’ और ‘निजम् निर्गुणम् निर्विकल्पम् निरीहम्’ कहा है। यानी शिव अविभक्त, अजन्मे, गुणातीत, कामनारहित और एक व्यापक चेतना हैं। समय आ गया है कि हमारे राजनेता ऐसे अवसरों पर परिपक्वता का परिचय दें।
देश की जनता राजनीतिक-कलह से तंग आ चुकी है। वह पूछ रही है कि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कब परिपक्व होगा और शिष्टाचार का परिचय देगा? क्या हमारे नेता शास्त्रार्थ यानी भद्र-विमर्श की परम्परा का परिचय नहीं दे सकते?
(ये लेखक के अपने विचार हैं)