बस्ते का बोझ कम, होमवर्क से आजादी !

बस्ते का बोझ कम, होमवर्क से आजादी, वार्षिक गतिविधियों पर होगा बच्चों का मूल्यांकन

अब मप्र में वार्षिक परीक्षा के बदले गतिविधियों पर सतत मूल्यांकन होगा। मप्र के स्कूली पाठ्यक्रम में मानवाधिकार को पाठ के रूप में जोड़ा जाएगा और सेवानिवृत प्रशासनिक अधिकारी इसे पढ़ाएंगे।

भोपाल । आजकल बच्चे बस्ते के बोझ से झुकते नजर आ रहे हैं। इसलिए मप्र में अब बच्चों को दिए जाने वाले होमवर्क का बोझ खत्म किया जाएगा। इससे बस्ते का बोझ कम होगा। वहीं अब मप्र में वार्षिक परीक्षा के बदले गतिविधियों पर सतत मूल्यांकन होगा। इससे रटने वाला ज्ञान खत्म होगा, बल्कि सीखने और सिखाने पर जोर दिया जाएगा। बच्चों को खेल-खेल में पढ़ाया जाएगा। यह बात स्कूल शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार ने मप्र मानव अधिकार आयोग के स्थापना दिवस पर प्रशासन अकादमी में बुधवार को शिक्षा का अधिकार व मानव अधिकार विषय पर आयोजित कार्यशाला में कही।

सात क्षेत्रीय भाषाओं पर पढ़ाई

मंत्री ने कहा कि मप्र के स्कूली पाठ्यक्रम में मानवाधिकार को पाठ के रूप में जोड़ा जाएगा और सेवानिवृत प्रशासनिक अधिकारी इसे पढ़ाएंगे। उन्होंने कहा कि मप्र में सीएम राइज स्कूलों में बाल वाटिका का शुभारंभ किया गया है। इनमें अरुण, उदय व प्रभात कक्षाएं प्रारंभ की गई हैं। इसमें पहले तीन साल नर्सरी, केजी-1 व केजी-2 तक पढ़ाई होगी। इसके अलावा मप्र में सात क्षेत्रीय भाषाओं पर कार्य किया जा रहा है। अब प्राथमिक कक्षाओं में मालवी, निमाड़ी, बघेली, बुंदेलखंडी सहित अन्य मातृ भाषाओं में पढ़ाई कराई जाएगी।

शिक्षकों की भर्ती होगी

स्कूल शिक्षा मंत्री ने बताया कि मप्र में 50 हजार शिक्षकों की भर्ती हो चुकी है। आगे 62 हजार शिक्षकों की भर्ती का काम पूरा कर देंगे। शिक्षकों के लिए प्रशिक्षण नीति बनाई गई है, ताकि वे बच्चों को बेहतर शिक्षा दे सकें। इस अवसर पर आयोग की शिक्षा का अधिकार-मानव अधिकार पुस्तिका का विमोचन भी किया।

कार्यक्रम में मप्र मानव अधिकार आयोग के कार्यवाहक अध्यक्ष मनोहर ममतानी, सदस्य राजीव टंडन, न्यायमूर्ति जेपी गुप्ता, न्यायमूर्ति वीपीएस चौहान, लोक शिक्षण संचालनालय की आयुक्त अनुभा श्रीवास्तव सहित विभिन्न विभागों के अधिकारीगण एवं विद्यार्थी उपस्थित थे।

हर बच्चे को मिले शिक्षा का अधिकार

कार्यशाला के विशेष अतिथि मध्य प्रदेश माध्यस्थम अधिकरण के अध्यक्ष न्यायमूर्ति जगदीश प्रसाद गुप्ता ने कहा कि भारतीय संविधान में दिए गए जीवन के अधिकार में ही शिक्षा का अधिकार समाहित है। वर्ष 2009 में पारित शिक्षा का अधिकार अधिनियम में 14 साल तक के बच्चों को शिक्षा दिलाना और इसके लिए सभी जरूरी व समुचित संसाधन उपलब्ध कराना भी राज्य सरकार का अनिवार्य दायित्व कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि यदि हमें आगे बढ़ना है तो बच्चों और बड़ों दोनों में विज्ञानी समझ विकसित करने की जरूरत है, तभी हम विश्व के ज्ञान गुरु बन पाएंगे।

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