इलेक्शन से पहले पार्टियों की वो चुनावी घोषणाएं …… जुमला बनकर रह गईं !

इलेक्शन से पहले पार्टियों की वो चुनावी घोषणाएं, जो बाद में जुमला बनकर रह गईं
चुनाव से पहले जनता से तमाम वादें करने वाली पार्टियां सरकार में आने के बाद उन वादों को पूरा कर पाती हैं या फिर दिन बीतने के साथ ही यह घोषणाएं सरकार के दैनिक एजेंडे से धुंधले हो जाते हैं.
दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश कहलाए जाने वाले भारत में साल 2024 में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं. इस चुनाव में अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए सभी पार्टियां अपने-अपने चुनावी वादों के साथ मैदान में उतर चुकी हैं. प्रचार के दौरान कांग्रेस, बीजेपी से लेकर सभी छोटी बड़ी पार्टियों ने जनता के बीच कई वादे भी करने शुरू कर दिए हैं. 

कोई पार्टी नौकरी देने का वादा कर रही है, तो कोई मुफ्त बिजली-पानी का. ऐसे में इस रिपोर्ट में उन चुनावी वादों के बारे में जानते हैं जो पिछले चुनावों में बीजेपी कांग्रेस समेत कई पार्टियां देती आई हैं. एक सवाल ये भी उठता है कि क्या जनता से तमाम वादें करने वाली ये पार्टियां सरकार में आने के बाद उन वादों को पूरा कर पाती हैं या फिर दिन बीतने के साथ ही यह घोषणाएं सरकार के दैनिक एजेंडे से धुंधले हो जाते हैं..

आइए एक नजर डालते हैं ऐसे ही दस बड़े वादों पर.

1. इंदिरा का गरीबी हटाओ

इंदिरा गांधी बतौर महिला प्रधानमंत्री देश के इतिहास की सबसे ज्यादा प्रभावी प्रधानमंत्रियों में रही हैं. साल 1966 में पीएम का पद संभालने के बाद से ही उन्होंने कई ऐसे बड़े फैसले लिए जिसकी दुनिया कायल थी. इंदिरा गांधी बतौर प्रधानमंत्री अपने फैसलों को लेकर जितना चर्चा में रही, ठीक उतना ही लोकप्रिय हुआ इंदिरा का ‘गरीबी हटाओ’ नारा. यह एक ऐसा नारा बन गया जिसे कांग्रेस की तीसरी पीढ़ी तक भुनाती रही है.

इंदिरा गांधी ने ‘गरीबी हटाओ’के नारे को साल 1971 में हुए चुनाव प्रचार के दौरान जमकर भुनाया. उन्होंने यह कहते हुए जनता के बीच हमदर्दी बटोरी कि‘वो कहते हैं इंदिरा हटाओ, हम कहते हैं गरीबी हटाओ’. वहीं दूसरी तरफ उस चुनाव प्रचार के दौरान विरोधी पार्टियों ने भी ‘गरीबी हटाओ’ नारा के जवाब में नारा दिया, ‘देखो इंदिरा का ये खेल, खा गई राशन, पी गई तेल. हालांकि उनका यह नारा इंदिरा के नारे के आगे फ्लॉप साबित हो गया और उस चुनाव में कांग्रेस ने 518 में से 352 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब हो पाई. 

इंदिरा गांधी ने साल 1970-71 में जब यह नारा दिया था. उस वक्त पॉवर्टी इन इंडिया की रिपोर्ट आई थी. इस रिपोर्ट के अनुसार उस वक्त देश में 22.3 करोड़ भारतीय गरीब थे. गांवों में सालाना 324 रुपए और शहरों में 489 रुपए से कम खर्च करने वालों को गरीब माना गया था.

देश से गरीबी हटाने के लिए 20 सूत्रीय कार्यक्रम बनाए गए. इसमें जरूरी वस्तुओं की दामों को कम करना, छोटे किसानों और कारीगरों से कर्ज की वसूली पर रोक के लिए कानून लाना, भूमिहीन मजदूरों, सरकारी खर्च में सख्ती, बंधुआ मजदूरी पर कारवाई जैसे कदम शामिल थे.

कितनी बदली जमीनी हकीकत

1. साल 1971 में जब इंदिरा ने गरीबी हटाओ के नारे को भुनाया था उस वक्त देश में गरीबी दर 57 प्रतिशत थी. सत्ता में आने के बाद इंदिरा सरकार ने गरीबी और गरीबों को लेकर कई योजनाओं की शुरुआत भी की. ये योजनाएं गांव के लोगों के जीवन स्तर को ऊपर उठाने और गरीबी घटाने के लिए प्रभावशाली भी साबित हुए. 

2. साल 1977 में देश में गरीबी दर 52 प्रतिशत पर पहुंच गई और साल 1983 में यही 44% पर थी और साल 1987 में देश में गरीबी तर 38.9 प्रतिशत तक आ गई. वर्तमान समय की बात करें तो अभी देश की गरीबी की दर लगभग 27.5 प्रतिशत जरूर है, लेकिन गरीब नहीं घटे नहीं है. 

3. साल 1971 से साल 2019 यानी कुल 48 सालों में से 30 सालों तक भारत में कांग्रेस का राज रहा. इस 30 सालों में भी 15 साल गांधी परिवार (इंदिरा गांधी 1971-1977, 1980-1984 और राजीव गांधी 1984-1989) के पास नेतृत्व रहा.  साल 1991 से 1996 यानी पीवी नरसिंह राव की सत्ता को छोड़ दें तो 2004 से 2014 तक भी गांधी परिवार ने ही मनमोहन सिंह के नेतृत्व में सरकार चलाई. लेकिन जब देश से गरीबी हटाने की बात की जाए तो पिछले 48 सालों में सिर्फ 13 प्रतिशत गरीबी ही कम हुई है. 

2. कांग्रेस का छत्तीसगढ़ में शराबबंदी करने का वादा ….

छत्तीसगढ़ में साल 2018 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान शराबबंदी एक बड़ा मुद्दा था. कांग्रेस ने वादा भी किया था कि उनकी सरकार सत्ता में आती है तो प्रदेश में शराब की ब्रिकी पर रोक लगा दी जाएगी. लेकिन अब इस वादे को पूरे साढ़े चार साल हो गए हैं लेकिन कांग्रेस सरकार ने शराबबंदी नहीं की है. बीजेपी कई बार इस पर सवाल भी उठाती रही है. 

क्यों नहीं कर पाई वादा पूरा 

दरअसल, छत्तीसगढ़ में शराब की खपत है बहुत ज्यादा है. ये भी कहा जा सकता है कि शराब से होने वाली आय से सरकार का खजाना भरता है. पिछले साल सरकार ने 15 हजार करोड़ शराब बेची थी. जिससे सरकार को 6800 करोड़ रुपए का टैक्स मिला था. 

3. छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का 1 लाख सरकारी नौकरी देने का वादा

कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ में पिछले चुनाव के प्रचार प्रसार के दौरान प्रदेश की जनता से वादा किया था अगर उनकी सरकार सत्ता में आती है तो राज्य सरकार की नौकरियों में आउटसोर्सिंग बंद होगी. पार्टी ने वादा किया था कि सभी विभागों के 1 लाख रिक्त पदों को जल्द भरा जाएगा. 

लेकिन साल 2023 के 18 जुलाई को जब  कांग्रेस के विधायक डॉ रेणु जोगी से सवाल किया कि उनकी सरकार ने कितने लोगों को सरकारी नौकरी दी है तो उन्होंने इस सवाल का कोई जवाब नहीं दिया. वहीं मुख्यमंत्री का जवाब था कि “जानकारी इकट्ठा की जा रही है.” 

4. मोदी सरकार का सरकारी नौकरी का वादा 

कांग्रेस कई बार बीजेपी पर निशाना साधते हुए आरोप लगा चुकी है कि साल 2014 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सत्ता में आए थे उस वक्त उन्होंने देश की युवाओं को हर साल 2 करोड़ रोज़गार देने का वादा किया था. चुनाव प्रचार के दौरान एनडीए सरकार ने स्किल इंडिया, मेक इन इंडिया जैसी महत्वाकांक्षी परियोजनाओं का भी खूब प्रचार-प्रसार किया था. लेकिन सत्ता में 9 साल होने के बाद वह अपने इस वादे को पूरा करने में कामयाब नहीं हो पाए हैं. 

30 जुलाई, 2022 को मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने मोदी सरकार से सवाल करते हुए दावा किया था कि मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद युवाओं को हर साल 2 करोड़ नौकरी देने का वादा किया था. उन्होंने कहा कि पिछले 8 साल में भारत में 22 करोड़ से ज्यादा अभ्यर्थियों ने सरकारी नौकरी के लिए आवेदन भी किए लेकिन इनमें से मुश्किल से 7.22 लाख लोगों का ही चयन नौकरी के लिए हो पाया. 

इसके अलावा बीते सोमवार यानी 28 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नए भर्ती किए गए 51 हजार से ज्यादा उम्मीदवारों नियुक्ति पत्र बांटे. इस दौरान भी कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला करते हुए कहा है कि हर साल 2 करोड़ नौकरियां देने का वादा फेल हो गया तो रोजगार मेले का नया जुमला लेकर आ गए हैं. साथ ही इसे एक नौटंकी करार दिया.

क्या 9 साल बाद केंद्र सरकार अपने इस वादे को पूरा कर पाई है?

1. मोदी सरकार के 9 सालों के कार्यकाल के पहले आठ साल में 7 लाख नौकरियां केंद्र सरकार ने दी और अब 10 महीने के अंदर साढ़े पांच लाख नियुक्ति पत्र युवाओं को बांट दिए गए हैं. 

2. हाल ही में राज्यसभा एक सवाल पूछा गया था जिसके जवाब में कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय के राज्यमंत्री डॉक्टर जितेंद्र सिंह ने कहा कि केंद्र सरकार के अलग-अलग विभागों में कुल 9 लाख 79 हजार 327 पद खाली हैं. इसी डाटा के अनुसार वर्तमान में रेलवे में 2,93,943, गृह मंत्रालय में 1,43,536, डिफेंस में 2,64,706 पद खाली पड़े हैं. 

इतना ही नहीं डेटा के अनुसार लेबर एंड एंप्लॉयमेंट, माइन्स, पोस्ट्स, रेवेन्यू, स्टेटिस्टिक्स, हाउसिंग एंड अर्बन अफेयर्स, स्पेस और वाटर रिसोर्सेस में भी हजारों पद खाली पड़े हैं. और ये आंकड़े मार्च 2021 के हैं.

5. 15-15 लाख देने का वादा 

7 नवंबर 2014, छत्तीसगढ़ के कांकड़ में एक सार्वजनिक रैली को संबोधित करते हुए नरेंद्र मोदी ने कहा था, “ दुनिया कहती है कि भारत में सभी चोर-लुटेरे अपना पैसा विदेशी बैंकों में जमा करते हैं. हमारे देश का यह काला धन वापस आना चाहिए या नहीं? इन रुपयों पर जनता का अधिकार है या नहीं? ये जो चोर-लुटेरों के पैसे विदेशी बैंकों में जमा हैं ना, वो अगर ले आए तो देश के गरीब आदमी को मुफ्त में 15-20 लाख रुपए यूं ही मिल जाएंगे.

हालांकि पीएम मोदी ने यह स्पष्ट नहीं है कि उन्हें इस राशि का अनुमान कहां से मिला था. यहां तक की भारतीय जनता पार्टी की आधिकारिक वेबसाइट पर 2014 के चुनावी घोषणा पत्र में भी 15-15 लाख रुपये हर भारतीय के खाते में डलवाने के वादे का कोई उल्लेख नहीं है. 

क्या इस वादे को पूरा करने में कामयाब हो पाई बीजेपी

1. प्रधानमंत्री के 15 लाख के इस दावे के संदर्भ में साल 2016 में एक आरटीआई भी दायर की गयी थी. इस आरटीआई के तहत जानने की कोशिश की गई थी कि देश के हर नागरिक के खाते में 15 लाख रुपये कब जमा होंगे. जिसके जवाब में पीएमओ कार्यालय ने कहा था कि यह आरटीआई अधिनियम 2005 के तहत ‘सूचना’ के रूप में नहीं गिना गया है. 

2. साल 2015 में अमित शाह ने एबीपी न्यूज को दिए इंटरव्यू में पीएम के 15 लाख वाले वादे का मतलब समझाने की कोशिश करते हुए कहते हैं, “देखो, यह एक जुमला है. किसी भी व्यक्ति के खाते में कोई राशि जमा नहीं की जाएगी. वे (विपक्ष) इसे जानते हैं, आप इसे जानते हैं और देश भी इसे जानता है. हमारी पार्टी देश के गरीबों की बेहतरी के लिए काले धन को वापस लाने और उसका इस्तेमाल करने पर विचार कर रहे हैं. हमारी सत्ता में देश के आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए योजनाएं बनाई जाएंगी. किसी भी व्यक्ति को नकदी नहीं मिलेगी और वे सभी इसे जानते हैं. उन्होंने साफ कहा कि पीएम मोदी का ऐसा कहना भाषण देने का एक तरीका है … उनका मतलब था कि जो भी काला धन वापस आएगा, उसका इस्तेमाल गरीबों के लिए योजनाएं बनाने के लिए किया जाएगा.

6. काले धन की वापसी

भारतीय जनता पार्टी ने साल 2014 में दावा किया था कि अगर उनकी सरकार सत्ता में आती है तो विदेशों में जमा काला धन 150 दिनों के भीतर भारत लाया जाएगा और इन ब्लैक मनी को वेलफेयर योजनाओं में लगाया जाएगा. अब मोदी सरकार के सत्ता में आने के सात साल बाद जुलाई 2021 में लोकसभा में काले धन को लेकर सवाल पूछा गया तो जवाब में वित्त मंत्रालय में राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने कहा कि, “पिछले 10 सालों में स्विस बैंक में छिपाए गए काले धन का कोई आधिकारिक आंकड़ा हमारे पास मौजूद नहीं है.”

उन्होंने कहा कि सरकार ने विदेश से काले धन लाने के कई प्रयास किए है. बीबीसी की एक रिपोर्ट में जाने-माने अर्थशास्त्री अरविंद विरमानी कहते हैं, ‘अगर केंद्र सरकार कहती है कि उन्हें ये नहीं पता कि स्विस बैंकों में कितना काला धन छिपा है, तो शायद उनके लिए इस बात की जानकारी जुटानी भी मुश्किल होगी कि वो काला धन किसका है, तो फिर उसे वापस लाने के लिए क्या किया जाए, ये कैसे तय होगा. 

भारत में ब्लैक मनी की अर्थव्यवस्था पर किताब लिख चुके प्रोफेसर अरुण कुमार का भी मानना कुछ ऐसा ही है. उन्होंने कहा कि इस सवाल का जवाब केंद्र सरकार के पास नहीं होगा क्योंकि जिस तरह से पैसे के स्रोत को नहीं बताया जाता है, ठीक उसी तरह वह पैसा कहां से आ रहा है, ये भी पता नहीं चल पाता, इतना ही नहीं ये पता लगाना भी मुश्किल होता है कि कितना पैसा कहां से चलकर कहां जा रहा है.

7. राजस्थान में बीजेपी का गैस सिलेंडर 450 रुपए का वादा 

राजस्थान में इस बार हुए विधानसभा चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी ने जनता से कई वादे किए थे. उनमें से एक वादा ये भी था कि अगर राज्य में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनती है तो प्रदेश के गरीब परिवारों को 450 रुपये में घरेलू गैस सिलेंडर दिया जाएगा.  

हालांकि बीते मंगलवार जब राज्यसभा में इसे लेकर सवाल पूछा गया तो केंद्र सरकार ने जवाब में कहा कि 450 रुपए में गैस सिलेंडर देने की केंद्र की कोई योजना नहीं है. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने इस तरह का कोई वादा ही नहीं किया था.  केंद्र सरकार ने आगे कहा कि  30 अगस्त 2023 को ही एलपीजी सिलेंडर पर 200 रुपए कम किए गए थे. इसके अलावा केंद्र साल 2022-23 और 2023-24 में भी 12 सिलेंडरों की रिफिलिंग पर प्रति सिलेंडर 200 रुपए की सब्सिडी दे रही है.

8. हर घर को 24*7 बिजली की उपलब्धता

सितंबर 2015 में मोदी सरकार ने वादा किया था कि 2022 तक देश के हर घर को 24 घंटे बिजली मिलने लगेगी. सरकार के इस घोषणा की समय सीमा भी पूरी हो चुकी है लेकिन अभी तक भारत के सभी घरों को 24 घंटे बिजली नहीं मिल पाई है. 24 घंटे बिजली मिलना तो दूर कई गांव ऐसे भी हैं, जहां आज तक बिजली नहीं पहुंच पाई है.

9. किसानों की आय दोगुनी करना

भारत के प्रधानमंत्री ने साल 2017 में कहा था कि पांच साल बाद यानी साल 2022 तक भारत के सभी किसानों की आय दोगुनी हो जाएगी. इसी बात को केंद्र सरकार ने साल 2021 तक केंद्र सरकार के हर वार्षिक बजट में भी दोहराई थी. लेकिन अब तय किया हुआ समय खत्म हो चुका है लेकिन किसानों की आय दोगुनी नहीं हुई. 

साल 2023-24 के वार्षिक केंद्रीय बजट में किसानों का बजट अनुमान पिछले साल से कम कर दिया गया है. यानी साल 2023-24 में कृषि बजट 1.24 लाख करोड़ था जिसे घटाकर 1.15 करोड़ के आसपास कर दिया गया है. यहां तक की साल 2021 की तुलना में फसल बीमा योजना का आवंटन भी 15,500 करोड़ से कम कर के 13,625 करोड़ रुपए कर दिया गया है. इसके अलावा खाद पर मिलने वाली सब्सिडी में भी भारी कटौती की गई है. 

10. बुलेट ट्रेन का वादा

14 सितंबर 2017 को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जापान के तत्कालीन प्रधानमंत्री शिंजो आबे के साथ गुजरात के अहमदाबाद में मुंबई से अहमदाबाद के बीच अपनी महत्वाकांक्षी बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट की आधारशिला रखी थी. उस वक्त उन्होंने जनता से कहा था कि भारत जब 15 अगस्त 2022 को 75वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा होगा उस वक्त देश की पहली बुलेट ट्रेन पटरी पर दौड़ने लगेगी. अब साल 2022 खत्म हो चुका है लेकिन भारत में बुलेट ट्रेन कब तक दौड़ेगी इसे लेकर अब तक संशय की स्थिति बनी हुई थी.

हालांकि फरवरी महीने में हुए एबीपी न्यूज के कॉन्क्लेव में रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा था कि 2026 के अगस्त महीने से देश की पहली बुलेट ट्रेन पटरी पर दौड़ने लगेगी.  

…………………………………………………

क्यों चुनावी वादों पर बहस नहीं चाहती हमारी पार्टियां …
पश्चिमी देशों में चुनावी वादों की ट्रैकिंग…तभी बाइडेन ने डेढ़ साल में 22% वादे पूरे किए

चुनावी वादा…इसकी परिभाषा यही बन गई है कि वो वादा जो पूरा न किया जाए। …लेकिन क्या वाकई में ऐसा है?

चुनावों के दौरान पार्टियों के अफलातूनी वादे सही ह या गलत…इस सवाल पर दायर एक याचिका की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच को ट्रांसफर हो चुकी है। यह सवाल ऐसा है जिस पर राजनीतिक दल भी दो खेमों में बंट गए हैं।

चुनाव आयोग ने हाल ही में यह कहा कि पार्टियों को चुनावी वादे के साथ यह ब्योरा भी देना चाहिए कि यह वादा पूरा करने के लिए पैसा कहां से आएगा। मगर कांग्रेस समेत कई राजनीतिक पार्टियां चुनाव आयोग के रुख से नाराज हैं। उनका कहना है कि वादे पूरे न हों तो फैसला जनता कर देगी…चुनाव आयोग बीच में न पड़े।

भारत में औसतन हर दो साल में किसी न किसी राज्य में विधानसभा चुनाव होता है। 5 साल में होने वाला लोकसभा चुनाव अलग…। हर चुनाव में हजारों वादे होते हैं, ये पूरे होते हैं या नहीं…इसके लिए कोई इंडिपेंडेंट ट्रैकिंग सिस्टम ही नहीं है।

जबकि, इसकी तुलना अमेरिका जैसे पश्चिमी देशों से की जाए तो स्थिति बिल्कुल उलट दिखती है। अमेरिका में औसतन हर राष्ट्रपति अपने चुनावी कैंपेन में किए वादों में से 60% से ज्यादा पूरे करता है।

अमेरिकन जर्नल ऑफ पॉलिटिकल साइंस में प्रकाशित 12 पश्चिमी देशों पर किया गया एक शोध बताता है कि चुने गए राजनीतिक दल अपने ज्यादातर वादे पूरे करते हैं। कई बार तो 80% तक चुनावी वादे पूरे होते हैं।

आइए, समझते हैं कि चुनावी वादों का गणित क्या है? भारत में इन वादों की मॉनिटरिंग क्यों नहीं होती और क्यों पश्चिमी देशों की चुनी हुई सरकारें वादे पूरे करना जरूरी समझती हैं।

पहले समझिए, वेस्टर्न वर्ल्ड में चुनावी वादों की अहमियत क्या है…

अब हम आपको बताते हैं देश और दुनिया में इलेक्शन कैंपेन के दौरान किए गए कुछ सबसे अजीबोगरीब वादे…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *