सुर्खियों में अडाणी से जुड़े फैसले देने वाले जज

जस्टिस अरुण मिश्रा को मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष बनाए जाने पर क्यों खड़ा हुआ हंगामा?

सुप्रीम काेर्ट से रिटायर हुए जज जस्टिस अरुण मिश्रा 2 जून को मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष चुन लिए गए। अब इससे जुड़ी दो बातें देखिए…
पहली बात: यह पद पिछले 6 महीनों से खाली पड़ा था। इससे पहले इस आयोग के अध्यक्ष जस्टिस एचएल दत्तू थे और उनका कार्यकाल पिछले साल 2 दिसंबर को खत्म हो गया था।
दूसरी बात: जस्टिस दत्तू के रिटायरमेंट के तीन महीने पहले यानी, 3 सितंबर 2020 को जस्टिस अरुण मिश्रा सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हो चुके थे। पर उनका सरकारी आवास- 13 अकबर रोड, नई दिल्ली, 9 महीने तक खाली नहीं कराया गया। नियम के मुताबिक एक महीने के भीतर ये सरकारी आवास खाली हो जाना चाहिए था।

नई दिल्ली में 13 अकबर रोड स्थित रिटायर्ड जस्टिस अरुण मिश्रा का वह मकान, जो 9 महीने तक खाली नहीं कराया गया था।
नई दिल्ली में 13 अकबर रोड स्थित रिटायर्ड जस्टिस अरुण मिश्रा का वह मकान, जो 9 महीने तक खाली नहीं कराया गया था।

इस पर सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रशांत भूषण कहते हैं, ‘शायद अरुण मिश्रा को मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष बनाने की सरकार की पहले से ही प्लानिंग थी।’ वैसे जस्टिस मिश्रा की नियुक्ति को लेकर 71 बुद्धिजीवियों और समाजसेवियों ने अपने साझा बयान में पूछा है कि इस नियुक्ति का आधार क्या है?

जस्टिस मिश्रा पर आरोप- अडाणी के पक्ष में दिए एक के बाद एक 6 फैसले

पहला केस: सुप्रीम कोर्ट में चलने वाला यह मुकदमा अडाणी गैस लि. बनाम यूनियन गवर्नमेंट था। यह केस नेचुरल गैस वितरण नेटवर्क प्रोजेक्ट से संबंधित था। अडाणी गैस लि. कंपनी का प्रोजेक्ट उदयपुर और जयपुर में चल रहा था, लेकिन राज्य के साथ हुए कॉन्ट्रैक्ट की शर्तें न मानने पर राजस्थान सरकार ने नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट वापस लेने के साथ इनका कॉन्ट्रैक्ट रद्द कर दिया। सरकार ने कॉन्ट्रैक्ट के वक्त जमा 2 करोड़ रु. भी जब्त कर लिया। साथ ही दोनों शहरों में गैस पाइपलाइन बिछाने की एप्लिकेशन भी रिजेक्ट कर दी। अडाणी गैस लि. सुप्रीम कोर्ट चली गई। वहां जस्टिस अरुण मिश्रा और विनीत सरन की बेंच ने राजस्थान सरकार का फैसला पलट दिया। गैस प्रोजेक्ट फिर से अडाणी को मिल गया और 2 करोड़ रु. की जब्ती भी रद्द कर दी गई।

फैसले की तारीख: 29/01/2019

दूसरा केस: टाटा पावर कंपनी लि. बनाम अडाणी इलेक्ट्रिसिटी मुंबई लि. एंड अदर्स का केस था। टाटा पावर मुंबई में इलेक्ट्रिसिटी सप्लाई का काम करती थी। रिलायंस एनर्जी लि. केवल उपनगरों या कहें कि शहर से बाहर के कुछ इलाकों में बिजली डिस्ट्रीब्यूशन का काम करती थी। टाटा पावर के 108 कस्टमर थे, ये वो कंपनियां थीं जो टाटा से बिजली लेकर शहर में बिजली आपूर्ति करती थीं। बीएसईएस/रिलायंस एनर्जी लि. को टीपीसी को पहले से बकाया राशि के साथ टैरिफ की रकम जोड़कर देनी थी।

महाराष्ट्र इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड को टाटा पावर सारा बकाया दे चुका था। मतलब एक चेन थी। टाटा पावर अपने कस्टमर, जिसमें रिलायंस की कंपनी भी थी, उनसे टैरिफ और बकाया लेती थी, फिर कॉन्ट्रैक्ट के मुताबिक महाराष्ट्र इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड को एक तरह से रेंट देती थी। पर कंपनी के आंतरिक बदलाव की वजह से बीएसईएस एनर्जी लि. 24 फरवरी 2004 को रिलायंस एनर्जी लि. में तब्दील हो गई। टीपीसी और रिलायंस एनर्जी लि. के लेन-देन को लेकर विवाद की स्थिति पर सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस अब्दुल नजीर की बेंच ने फैसला अडाणी इलेक्ट्रिसिटी मुंबई लिमिटेड के पक्ष में दिया था।

फैसले की तारीख: 02/05/2019

तीसरा केस: यह केस परसा कांटा कोलरिज लि. बनाम राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन का है। छत्तीसगढ़ के दक्षिण सरगुजा के हसदेव-अरण्य कोल फील्ड्स के परसा ईस्ट और केते बासन में आवंटित कोल ब्लॉक प्रोजेक्ट को लेकर वहां के आदिवासियों में गुस्सा था। इस प्रोजेक्ट में अडाणी और राजस्थान सरकार के बीच 74% और 26% की हिस्सेदारी थी। ग्रीन ट्रिब्यूनल ने इसे रोक दिया था। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने भी आदिवासियों की आपत्ति पर नोटिस जारी किया था। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। जस्टिस मिश्रा और जस्टिस शाह की बेंच ने अडाणी के पक्ष में फैसला सुना दिया।

इस मामले की सुनवाई पहले से जस्टिस रोहिंटन नरीमन और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की बेंच कर रही थी। पर सुप्रीम कोर्ट के तब के चीफ जस्टिस ने इसे हड़बड़ी में जस्टिस मिश्रा की ग्रीष्मकालीन अवकाश पीठ में सूचीबद्ध कर दिया। बिना पुरानी बेंच को जानकारी दिए इसकी सुनवाई भी हो गई और फैसला भी आ गया।

फैसले की तारीख: 7/6/2019

चौथा केस: यह मामला अडाणी पावर मुंद्रा लिमिटेड और गुजरात इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी कमीशन के बीच का है। इसे भी ग्रीष्मकालीन अवकाश बेंच में लिस्ट किया गया। 23 मई 2019 को जस्टिस मिश्रा और जस्टिस शाह की बेंच ने सुनवाई की। एक ही सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया गया। फिर अडाणी की कंपनी को गुजरात इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी कमीशन के साथ किए गए बिजली वितरण का कॉन्ट्रैक्ट रद्द करने की मंजूरी दे दी गई। फैसला इस आधार पर दिया गया कि सरकार की कोल खनन कंपनी अडाणी पावर लि. को कोल आपूर्ति करने में असमर्थ रही। जबकि अडाणी ने बोली लगाने के बाद कॉन्ट्रैक्ट रद्द कर दिया था। दरअसल, अडाणी की कंपनी को लगने लगा था कि सौदा कम मुनाफे का है। लिहाजा अडाणी पावर मुंद्रा लि. करार जारी रखना नहीं चाहती थी।

फैसले की तारीख: 02/07/2019

पांचवां केस: यह केस पांवर ग्रिड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया बनाम कोरबा वेस्ट पावर कंपनी लि. का है। 22 जुलाई 2020 को जस्टिस अरुण मिश्रा की बेंच ने सरकारी कंपनी पावर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लि. के खिलाफ अडाणी की कंपनी कोरबा वेस्ट पावर कंपनी लिमिटेड के पक्ष में फैसला सुनाया था। इसमें पावर ग्रिड को कोरबा वेस्ट से बकाया लेना था। पावर ग्रिड का आरोप था कि अडाणी की कंपनी ने कानूनी दांवपेच चलते हुए करोड़ों का बकाया हजम कर लिया।

फैसले की तारीख: 05/03/2020

छठा केस: सितंबर 2020 में अडाणी राजस्थान पावर लिमिटेड (एआरपीएल) के पक्ष में एक और फैसला आया। जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस विनीत सरन और जस्टिस एमआर शाह की बेंच ने राजस्थान की बिजली वितरण कंपनियों के समूह की वह याचिका खारिज कर दी, जिसमें एआरपीएल को कंपनसेटरी टैरिफ देने की बात कही गई है। पीठ ने राजस्थान विद्युत नियामक आयोग और विद्युत अपीलीय पंचाट के उस फैसले को सही ठहराया, जिसमें एआरपीएल को राजस्थान वितरण कंपनियों के साथ हुए पावर परचेज एग्रीमेंट के तहत कंपनसेटरी टैरिफ पाने का हकदार बताया गया था। जानकारों के मुताबिक इस फैसले से अडाणी ग्रुप को 5,000 करोड़ रु. का फायदा हुआ।

फैसले की तारीख: 31/08/2020

फैसलों से अडाणी की कंपनियों को 20 हजार करोड़ का फायदा
सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील प्रशांत भूषण के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के इन फैसलों से अडाणी की कंपनियों को करीब 20,000 करोड़ रु. का फायदा हुआ है। वे कहते हैं, ‘ग्रीष्मकालीन अवकाश के दौरान दो फैसले इतनी हड़बड़ी में लिए गए कि दूसरे पक्ष के काउंसिलर्स को भी सूचना नहीं दी गई है।’

…और भी फैसले जो जस्टिस अरुण मिश्रा पर उंगली उठाते हैं
2015 में जस्टिस मिश्रा देश के तब के मुख्य न्यायाधीश एचएल दत्तू के साथ भी उस पीठ में थे, जिसने भारतीय पुलिस सेवा के पूर्व अधिकारी संजीव भट्ट की उस याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें 2002 में गुजरात दंगों की जांच फिर से खोलने के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी।

2017 में जस्टिस मिश्रा ने उस बेंच का नेतृत्व किया था, जिसने ‘सहारा-बिड़ला पत्रों’ की जांच की अर्जी खारिज कर दी थी। उस मामले में CBI छापे के दौरान आदित्य बिड़ला समूह के ऑफिस से बरामद दस्तावेज सामने आए थे। इनसे पता चला था कि अलग-अलग समय पर ऑफिसर और नेताओं को बड़ी मात्रा में भुगतान किया गया था। कोर्ट ने इन दस्तावेजों को पहली नजर में ‘हल्के दस्तावेज’ कहते हुए केस खारिज कर दिया था।

जस्टिस मिश्रा उस बेंच में भी शामिल थे, जो कथित तौर पर जस्टिस बृजगोपाल हरकिशन लोया की हत्या के मामले की सुनवाई के लिए गठित की गई थी। जज लोया की मौत उस वक्त हुई, जब वे ऐसे मामले की सुनवाई कर रहे थे, जो गुजरात पुलिस द्वारा सोहराबुद्दीन शेख और उनके एक सहयोगी की हत्या के साथ साथ-साथ उसकी पत्नी कौसर बी के बलात्कार और हत्या से जुड़ा था।

16 अगस्त 2019 को सीनियर एडवोकेट दुष्यंत दवे ने अडाणी से जुड़े सभी फैसलों को लेकर उस वक्त के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई को खत भी लिखा था।

12 जनवरी 2018 को नई दिल्ली में तुगलक रोड पर बंगला नंबर चार में सुप्रीम कोर्ट के चार जज जे. चेलमेश्वर, रंजन गोगोई, मदन बी. लोकुर और कुरियन जोसेफ ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी। इसमें जजों ने चिंता जताई थी कि कुछ खास मुकदमों को सुप्रीम कोर्ट की खास बेंच को ही दिया जा रहा है। तब एक पत्रकार ने जजों से पूछा था कि क्या आप जस्टिस लोया की हत्या के मामले को जस्टिस अरुण मिश्रा की बेंच को सौंपने की बात कर रहे हैं, तो इस पर जज रंजन गोगोई ने कहा था, हां हम इसी वजह से यह प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे हैं।

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