डीआरडीई का 50वां स्थापना दिवस आज ….. 49 साल में 101 राष्ट्रीय व 12 अंतरराष्ट्रीय शोध का पेटेंट, कैंसर और काेराेना से बचाव की दवा भी बनाई
रक्षा अनुसंधान एवं विकास स्थापना (डीआरडीई) ने 49 वर्ष में लाइफ साइंस अनुसंधान की 75 फीसदी तकनीकी का हस्तांतरण किया है। इस दौरान संस्थान के वैज्ञानिकों ने 101 अनुसंधान के राष्ट्रीय पेटेंट व 12 अनुसंधान का अंतरराष्ट्रीय पेटेंट कराया है। वैज्ञानिकों ने सैन्य क्षेत्र के अलावा जनहित के लिए भी महामारी के दौरान रोगों पर असरदार दवाओं का भी निर्माण किया है।
देश में रेलवे सहित अन्य विभागों के लिए बायो डाइजेस्टर का निर्माण कर स्वच्छता क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। डीआरडीई की बायो डाइजेस्टर तकनीकी का 60 से अधिक कंपनियों को हस्तांतरण किया गया है जो अभी इसका निर्माण कर रहीं है। कोरोना व कैंसर की रेडियो थैरेपी की 2-डी ऑक्सी डी ग्लूकोज(2-डीजी) के निर्माण के अधिकार 17 कंपनियों को दिए गए हैं।
डीआरडीई 28 दिसंबर काे अपनी स्थापना के 50वें साल में प्रवेश कर रहा है। संस्थान ने पिछले 49 साल में 287 प्रौद्योगिकी तकनीकी का हस्तांतरण किया है और एनबीसी सूट, बायोडाइजेस्टर, डेपा, 2-डीजी सहित 24 विश्वस्तरीय उत्पादों का विकास किया है जिनका सेना व जनता उपयोग कर रही है। प्रौद्योगिकी हस्तांतरण से विदेशी मुद्रा के बड़े पैमाने पर बचत हुई है।
कोरोना काल में सेनेटाइजर निर्माण से लेकर दवा बनाने में निभाई अहम भूमिका
डीआरडीई ने राष्ट्रीय आपदा से बचाव में भी योगदान दिया है। भोपाल गैस त्रासदी, प्लेग महामारी (सूरत और शिमला), स्वाइन फ्लू एवं कोरोना महामारी में प्रभावशाली 2-डीजी दवा भी डीआरडीई द्वारा विकसित की गई तकनीकी का उपयोग कर की गई है। सेनेटाइज़र का उत्पादन, एन-95 मास्क के मूल्यांकन, परीक्षण एवं विकास, पीपीई किट के परीक्षण एवं कोरोना संदिग्ध नमूनों की जांच में भी भूमिका निभाई है।
केमिकल अटैक से बचाव करने की तकनीकी में देश की इकलौती और विश्व की चौथी प्रयोगशाला
संयुक्त राष्ट्र संघ की संस्था ‘ओपीसीडब्ल्यू’ द्वारा मनोनीत देश की एकमात्र एवं विश्व की चुनिंदा प्रयोगशालाओं में डीआरडीई शामिल है। रसायन रक्षा के क्षेत्र में यह देश की एकमात्र और विश्व की चौथी प्रयोगशाला है। 1997-98 में 2-डी ऑक्सी डी ग्लूकोज के लिए तकनीकी विकास व अनुसंधान के लिए पूर्व राष्ट्रपति एजीजे अब्दुल कलाम ने भी डीआरडीई पर ही भरोसा किया था।